"मां"
"मां"
मां का कोई पर्याय नहीं
मां सा कोई सगा नहीं।
खुद भगवान
मां को बनाने के बाद
अनेकों प्रयास के बाद।
मां जैसा दिल न बना सके
मां जैसी मूरत न गढ सके।
मां तो ममता का झरना है
जो हर ऋतु हर मौसम
निरंतर बहता रहता है।
मां का मन सेवा की मूरत है
निरंतर परिवार की सेवा में
लगा रहता है।
मां बैठी रहती है
बीमार बच्चे के
सिहराने रात भर
नींद भी हार जाती है।
काम करती है दिन भर
थकान भी हार जाती है।
न जाने इतना सब्र
इतना मनोबल
मां कहाँ से लाती है।
पीहर की जब जब
याद सताए
अपना बक्सा खोल
सामान फिर जमा लेती है।
ईश्वर खुद
मां की ममता का
आनंद लेना चाहते हैं।
इसी कारण
अवतार लेकर
धरा पर आते हैं।