होते वादों का अंजाम
होते वादों का अंजाम
कहीं घेरे भीड़,
कहीं मंच सूना है,
कहीं धूप छांव,
कहीं ठहरा अंधेरा है।
होते वादों का अंजाम,
देखो कहां पूरा है,
मंच से तरकश तीर,
घाव कहां सूखा है।
मिथ्या बीन बजाता,
देखो कहां सपेरा है,
सर्प ने वहां काटा,
जहां दूध कटोरा है।
मंच पर आसीन मसीहा बैठा है,
फिर डर क्यों बांटता फिरता है,
संकेत काले नाग सा देता है,
मंच पर मसीहा या सपेरा बैठा है।
