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Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract

4.7  

Ratna Kaul Bhardwaj

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ज़िन्दगी

ज़िन्दगी

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ए ज़िन्दगी तू कितनी खुशगवार होती

चंद होती ज़रूरतें, ख्वाहिशें न बेशुमार होती


सांस दर सांस न तेरी उम्र घट जाती

काश पटरी पर न तेज़ तेरी रफ्तार होती


न तेरी राह जदोजहद से भरी होती

न मैं रंजिश करती, न बेकरार होती


न चाल चलता ज़माना फितरत भरा

न वफ़ा की किल्लत होती, यारी दिलदार होती


काश ख्वाब न टूटते, दिल सकून पा जाता

वजूद मैं समझ पाती, थोड़ा और होशियार होती


ए ज़िन्दगी थोड़ी दरियादिली मेरे दुश्मन में होती

न अश्क पीने पड़ते, न ज़िबह बार बार होती


न हर सुबह मुझसे मेरा कल छिन जाता

तुम इंतज़ार करती, मैं गुले गुलज़ार होती।


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