ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
ए ज़िन्दगी तू कितनी खुशगवार होती
चंद होती ज़रूरतें, ख्वाहिशें न बेशुमार होती
सांस दर सांस न तेरी उम्र घट जाती
काश पटरी पर न तेज़ तेरी रफ्तार होती
न तेरी राह जदोजहद से भरी होती
न मैं रंजिश करती, न बेकरार होती
न चाल चलता ज़माना फितरत भरा
न वफ़ा की किल्लत होती, यारी दिलदार होती
काश ख्वाब न टूटते, दिल सकून पा जाता
वजूद मैं समझ पाती, थोड़ा और होशियार होती
ए ज़िन्दगी थोड़ी दरियादिली मेरे दुश्मन में होती
न अश्क पीने पड़ते, न ज़िबह बार बार होती
न हर सुबह मुझसे मेरा कल छिन जाता
तुम इंतज़ार करती, मैं गुले गुलज़ार होती।