संकट की घड़ी
संकट की घड़ी
इस संकट भरे समय में,
हर्षित हो तुमको कैसे बुलाऊँ।
दु:खों से भरा है मन मेरा ,
अंतर्मन को कैसे समझाऊँ।।
वेदना से भरा नजारा था,
यादों में गुजरी सुबह और शाम थी ।
"स्मृति- भवन "में वो गुजरीं रातें ,
पल- पल आँखों को भिगोती थी ।।
भुला ना सका उन स्मृतियों को,
जो हृदय पटल में अंकित थीं।
याद करते-करते कई रातें बीतीं,
तुमसे मिलने की आस अधूरी थी।।
सपनों में कभी तुम समझा जाते ,
विचलित मन में धीर बँधाने को ।
सुबह का सूरज तब देख यह लगता,
कहीं बीत ना जाए घड़ी तुमसे मिलने को।।
समय कभी भी एक सा नहीं रहता,
प्रकृति के नियमो ने है मुझे सिखलाया।
वह दिन तो एक दिन आकर रहेगा,
"नीरज" को तो तुमने ही, नई राह दिखलाया।।