कफस
कफस
जिंदगी को चलचित्र की भांति आंखो से गुजरते देखा,
हर एक अंतराल में बस खुद को सिमटते देखा।
ख़ुद के दायरे में बस खुद को ही तड़पते देखा,
अपनी हर एक ख्वाहिश को अपने ही हाथो कुचलते देखा,
अपने हर एतराज को इकरार में बदलते देखा
हर बार संकोच की पराकाष्ठा पे खुद को चढ़ते देखा,
कोई क्या कहेगा इस बात से खुदको डरते देखा।
लेकिन अब चाहती हूं बस खुलकर जीना,
अपनी सोच के दायरों से खुद ही निकलना,
चाहती हूं हर बैसाखी छोड़कर आगे बढ़ना,
चाहती हुअपनी छोटी सी ख्वाइश पूरी करना,
सच कहूं हा चाहती हूं बस खुद की रूह को
खुद की कफस से आजाद करना.....।