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Babu Dhakar

Abstract

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Babu Dhakar

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तन और मन के बीच

तन और मन के बीच

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तन और मन के बीच 

प्रण और प्रीत के बीज

तन चतुर चर का गीत

मन मधुर मिलन का संगीत ।


मैं मन के द्वारे बैठी

मैं तन के सिर्फ साथ रहती

मैं उन यादों की लहरो में

बस फरियाद करती रहती |


तन और मन का वार

साथ नहीं कोई यार

प्राणो के प्रति मोह की रेख

आने में मुझसे क्यों हुई देर ।


बेहिसाब बेइंतहा परछाइयों में

मैं अपनी परछाईं ढूंढ़ती रहती 

दिल जो दयावान पर दिलदार होता साथी

इस बात पर मैं तो हर बार परेशान होती |


सागर में तो ये मोती 

मैं हूँ जो मन में रोती 

प्राणों में सदैव मेरे रहती आहें

ये मेरे बिछड़े साथी की है सांसे ।


अगर पत्थर दिल पिघल जाता

अवश्य ही मन का मीत मिल जाता

अगर मैं जो हवा की चाल में चलती

अवश्य तरु की छांव में भी छली जाती ।


समय नव मय महीन है

स्वयं विजय में तल्लीन है 

भव बाधा में भय का डरावना रूप है

ये समय ही संबल का संभालता स्वरूप है।


मन से प्रकट मनोरम

मन का मन्नत मनोबल 

तन से प्रकट सम्मोहन

तन का प्रदत प्रलोभन ।


मन मधुवन में जैसे सावन

तन सुख में बेसुध अहम का ज्ञापन

मन में जो हवा के झौंके सा है शीतल बचपन

तन कब उभर जाता हैं ये बन आंधी सा यौवन । 


मैं मन की मधुर

मै तन की तरुण

मैं रोती तेरे कारण

में बोली तेरे कारण ।


तन और मन के बीच 

प्रण और प्रीत के बीज

तन चतुर चर का गीत

मन मधुर मिलन का संगीत ।



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