STORYMIRROR

Krishna Bansal

Abstract Inspirational

4.6  

Krishna Bansal

Abstract Inspirational

यात्रा

यात्रा

1 min
270



तुम्हें भी तो याद होगा 

जब यात्रा शुरू की थी 

साथ साथ कदम उठाए थे 

एक सोच 

एक विचार

एक स्तर 

दो जिस्म 

इक जान थे हम।


ऐसा लगा था 

या पहना हुआ मुखौटा था 

कह नहीं सकती 

अच्छी शुरुआत थी

सोचा था 

कट जाएगी यात्रा 

हंसते हंसते  

खुशी से।


न जाने कब और क्यों हुआ 

तुम वृक्ष बन गए

मैं नदी बन बहती रही 

मै

ं प्रश्न नहीं उठा रही 

तुम खड़े क्यों रह गए

तुम भी छायादार हो 

फलदार हो 

इतने लोगों के पालक हो।

 

मैं नदी बनी 

क्योंकि मुझे विशाल का 

अनुभव करना था 

मुझमें अनंत की इच्छा थी 

मुझे प्रियतम से मिलना था

अन्तर्मन से विकसित होना था।


रास्ते अलग अलग होने से

कठिनाइयाँ तो बहुत आईं।


दोष में तुम्हें देती 

शायद हमारी 

सही पहचान यही थी।




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract