माँ का बलिदान
माँ का बलिदान
दसवें माले पर मुस्कुराता,
एक छोटा सा परिवार,
थ्री बी एचके सुन्दर घर,
जिससे दीखता था शहर,
नित्य की भाँती आज भी,
माँ-बाप संग अठखेलियाँ,
कर रहा था नन्हा बालक,
फर्श पर पड़े थे गुड्डे-गुड़िया,
एक दूध का डब्बा, एक पुड़िया,
पापा तैयार थे ऑफिस जाने को,
माँ बना रही थी खाना खिलाने को,
तभी हुआ एक धमाका गैस का,
और पूरा कमरा जल रहा था,
बेडरूम में आग पहुँचने को,
था आतुर बच्चे को छूने को,
किसी तरह माँ ने उठाया,
अपने दिल के टुकड़े को,
दौड़े आये पापा भी पीछे,
खिड़की से बच्चे को बाहर,
निकाल तो दिया मगर,
अभी धू-धूकर जल रहा,
और बच्चा दस माले ऊपर,
माँ-बाप के हाथ में,
हवा में लटकता हुआ,
तभी दमकल पहुंची,
किसी तरह बच्चे को,
माँ के हाथों से छुड़ाया,
जल चुका था शरीर,
मगर बच्चा सलामत,
माँ-बाप इसलिए होते हैं,
खुदा की इबादत।