माँ-बाप और आज की पीढ़ी
माँ-बाप और आज की पीढ़ी
जोड़ के पाई-पाई, हर सुख झोली में हमारी डालते हैं
न जाने यह माँ-बाप किस मिट्टी के बने होते हैं।
जहाँ ममता की गहराई माँ के रग-रग में होती है
पिता ठंडी छांव, कभी तपिश न महसूस होने देते है,
न जाने...
बेटा अच्छी नौकरी पाए, बेटी अपने घर विदा हो जाए
यही सपना सदा देखते हैं, यही सपना लेकर जीते हैं,
न जाने...
दुख चाहे हो पर्बत जैसा, मुश्किलों का हो चाहे अंबार
ठहाकों संग हंसना, कुछ अलग ही दृश्य दिखलाते रहते हैं,
न जाने...
"बेटा तुम बाइक ले लेना;बेटी तुम टैक्सी में जाना”
पर न जाने खुद कितना सफर पैदल ही पूरा करते हैं,
न जाने...
मेहनत करके कमाते हैं, थोड़ा-थोड़ा करके जोड़ते हैं
खुद रूखी-सुखी खाकर, बच्चों के लिए पिज़्ज़ा आर्डर करते हैं,
न जाने...
माँ की होती हैं मामूली साड़ियां, पिता के दो-तीन जोड़े कपडे
बच्चों के मन न मुरझाये, हर तरह के कपडे खरीदवा देते हैं,
न जाने...
न जाने कहाँ से माँ-बाप इतना सब्र लेकर आते हैं
हालातों से लड़ते-लड़ते, कितना कुछ आसानी से सहते हैं,
न जाने...
अब बच्चे बड़े हो जाते हैं, मद-मस्ती में खो जाते हैं
रोते हैं माँ-बाप छुप-छुप कर, पर कभी दुहाई न देते हैं,
न जाने...
परेशान न हो बच्चे, मन उनका कहीं विचलित न हो
अक्सर अपनी बीमारी भी बच्चों से छुपाये फिरते हैं,
न जाने...
बच्चों के भविष्य की खातिर वे अपना सर्वस्व लुटाते हैं
और बच्चे चकाचौंद में बहकर, रिश्तों को ही भूल जाते हैं,
न जाने...
महत्वकांक्षाओं के पीछे लगने लगते है बोझ माता-पिता
न जाने कितने झरझरे शरीर वृद्धाश्रमों में पड़े रहते हैं,
न जाने...
आज की पीढ़ी भूल जाती है क्यों सच्चाई यह अंतरिम
माँ-बाप अपने अरमान छोड़कर अधूरे, उनका भविष्य बनाते हैं,
न जाने...
माँ-बाप, गर इन दो अक्षरों में समाया है यह सारा संसार
फिर क्यों रिश्ते उधड़ जाते हैं, क्यों बच्चों के मन मैले हो जाते हैं,
न जाने यह माँ-बाप किस मिट्टी के बने होते हैं।
