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Ratna Kaul Bhardwaj

Classics

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Ratna Kaul Bhardwaj

Classics

माँ-बाप और आज की पीढ़ी

माँ-बाप और आज की पीढ़ी

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जोड़ के पाई-पाई, हर सुख झोली में हमारी डालते हैं

न जाने यह माँ-बाप किस मिट्टी के बने होते हैं।


जहाँ ममता की गहराई माँ के रग-रग में होती है

पिता ठंडी छांव, कभी तपिश न महसूस होने देते है,

न जाने...


बेटा अच्छी नौकरी पाए, बेटी अपने घर विदा हो जाए

यही सपना सदा देखते हैं, यही सपना लेकर जीते हैं,

न जाने...


दुख चाहे हो पर्बत जैसा, मुश्किलों का हो चाहे अंबार

ठहाकों संग हंसना, कुछ अलग ही दृश्य दिखलाते रहते हैं,

न जाने...


"बेटा तुम बाइक ले लेना;बेटी तुम टैक्सी में जाना”

पर न जाने खुद कितना सफर पैदल ही पूरा करते हैं,

न जाने...


मेहनत करके कमाते हैं, थोड़ा-थोड़ा करके जोड़ते हैं

खुद रूखी-सुखी खाकर, बच्चों के लिए पिज़्ज़ा आर्डर करते हैं,

न जाने...


माँ की होती हैं मामूली साड़ियां, पिता के दो-तीन जोड़े कपडे

बच्चों के मन न मुरझाये, हर तरह के कपडे खरीदवा देते हैं,

न जाने...


न जाने कहाँ से माँ-बाप इतना सब्र लेकर आते हैं 

हालातों से लड़ते-लड़ते, कितना कुछ आसानी से सहते हैं,

न जाने...


अब बच्चे बड़े हो जाते हैं, मद-मस्ती में खो जाते हैं

रोते हैं माँ-बाप छुप-छुप कर, पर कभी दुहाई न देते हैं,

न जाने...


परेशान न हो बच्चे, मन उनका कहीं विचलित न हो

अक्सर अपनी बीमारी भी बच्चों से छुपाये फिरते हैं,

न जाने...


बच्चों के भविष्य की खातिर वे अपना सर्वस्व लुटाते हैं

और बच्चे चकाचौंद में बहकर, रिश्तों को ही भूल जाते हैं,

न जाने...


महत्वकांक्षाओं के पीछे लगने लगते है बोझ माता-पिता

न जाने कितने झरझरे शरीर वृद्धाश्रमों में पड़े रहते हैं,

न जाने...


आज की पीढ़ी भूल जाती है क्यों सच्चाई यह अंतरिम

माँ-बाप अपने अरमान छोड़कर अधूरे, उनका भविष्य बनाते हैं,

न जाने...


माँ-बाप, गर इन दो अक्षरों में समाया है यह सारा संसार 

फिर क्यों रिश्ते उधड़ जाते हैं, क्यों बच्चों के मन मैले हो जाते हैं,

न जाने यह माँ-बाप किस मिट्टी के बने होते हैं।


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