STORYMIRROR

लोकतंत्र बेहाल बहुत है

लोकतंत्र बेहाल बहुत है

1 min
380


जीवन सारा बीत गया फूटी गागर भरते-भरते

श्याम हो गई उजली चादर कालापन हरते-हरते।


बिछे हुये शूलों की गिनती को क्या बतलायें हम

सुबह से ले शाम हो गई झूठ को सच करते-करते।


कागज जस हुई जिन्दगी तूफानों से लड़ते-लड़ते

उपवन उदास मन से देखे सुमनों को झरते-झरते।


लोकतंत्र बेहाल बहुत है किसको व्यथा सुनायें

जीना हुआ मुहाल बहुत है जीते हम डरते-डरते।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama