लो मिल गई मुझे
लो मिल गई मुझे
लो मिल गई मुझे,
एक छोटी-सी बच्ची,
जिसको मैं कब से ढूँढ रही थी।
जो इस जग को,
कौतूहल से देखती है।
उत्सुकता भरी पड़ी है उसमें,
एक छोटी-सी ख़ुशी पाकर,
उछल पड़ती है।
एक पल हँसती है,
दूसरे पल रोने लगती है।
इस जग के राग द्वेष से,
उसका कोई नाता नहीं है।
कभी नाराज होती है,
रूठ जाती है,
बैठ जाती है मुँह फुलाकर।
दूसरे ही पल मनाने से,
मान जाती है।
सब को अपना समझती है,
कोई पराया नहीं है उस के लिए।
अभी-अभी तो चलना सीखी है,
लो मिल गई मुझे,
वो छोटी-सी बच्ची,
आज मुझमें ही।