लिखती जब एक कविता
लिखती जब एक कविता
हाँ मैं लिख देती हूं एक कविता
अपने मन के भावों, जज्बातों को बयां करने के लिए
हाँ मैं लिख देती हूं एक कविता
जब बरसातों में देखूँ नाचता मोर, पंछी करते कलरव और सौन्दर्य प्रकृति का
हाँ मैं लिख देती हूं एक कविता
समाज को नई रोशनी, एक प्रेरणा देने के लिये
हाँ मैं लिख देती हूं एक कविता
जब दुखने लगता हृदय, अपनी पीड़ा को समेटे शब्द कुछ उकेरे काग़ज़ पर दर्द को मेरे बयां करते
हाँ मैं लिख देती हूँ एक कविता
कलम को आवाज देने के लिये, उसकी ताकत की गहराई बताने के लिए
हाँ मैं लिख देती हूँ एक कविता
जब मौन हो जाती जुबान, अपनी भावनाओं को कुछ अनकहे शब्दों को रखना किसी व्यक्ति विशेष के समक्ष
हाँ मैं लिख देती हूँ एक कविता
जब एक छोटी बच्ची के साथ कुछ गलत होते हुए देखती नहीं सहा जाता मुझसे
हाँ मैं लिख देती हूँ एक कविता
जिंदगी की पहेली को समझने के लिये, जो कभी हँसाती, रुलाती
जीवन के मीठे, कड़वे अविस्मरणीय पल को अनुभव कराती
हाँ मैं लिख देती हूँ एक कविता
जब छली जाती जज्बातों से किसी व्यक्ति के व्यंग्य से आहत होती किसी की समीक्षा से
हाँ मैं लिख देती हूँ एक कविता
अपने छोटे बच्चे को सभ्यता संस्कृति से जोड़ने के लिये, उसे अच्छे संस्कार और नैतिक व्यवहार सिखाने के लिए
हाँ मैं लिख देती हूँ एक कविता
शेष पीड़ाओं को सहते जब थक जाती काया, जब नारी के सब्र का बाँध टूटता तब रौद्र रूप दिखाती मेरी कविता
हाँ मैं लिख देती हूँ एक कविता
जब किसी गरीब की झोपड़ी टूटती, एक गरीब पर हो रहे अत्याचार को देखती
हाँ मैं लिख देती हूँ एक कविता
जब भीग जाती पलकें सोखती आँचल के कोने
उदासी, मायूसी जब छलकती चेहरे पर तो अपने दर्द को बयां करती
हाँ मैं लिख देती हूँ एक कविता
जब दोनों हाथो में होते मेरे कागज और क़लम शब्दों को उकेरे कुछ अनकहे ज़ज्बात, दिल की व्यथा बताते
हाँ मैं लिख देती हूँ एक कविता
कशमकश में अटकी पड़ी रहती हूँ उलझनों से घिरी रहती हूँ
जिंदगी की उलझनों का समाधान जब खोजती हूँ
हाँ मैं लिख देती हूँ एक कविता
जीवन के खालीपन में रंग भर ने के लिए
रंगों से दोस्ती करती हूँ अपने जीवन के अधूरेपन को दूर करती हू,
भरती हूँ रंग उसमें विश्वास का, उम्मीद की किरण, अपने सपनों को साकार करने का,
और नए सवेरे का रहता मुझे इंतजार
तब हाँ मैं लिख देती हूँ एक कविता ।
