Shriram Sahoo
Tragedy
पुत्र का
माता-पिता
के प्रति
यह
कैसा लगाव है ?
यदा-कदा
"वृद्धाश्रम"
आता-जाता रहता है।
कविता एक प्या...
हे अन्नदाता !
तुगलक
कुछ कविताएं
व्यंग्य क्षणि...
सेनेरयू
हाइकू
हुड़दंग
बसन्त पर हाइक...
समय/हाइकु
सही और ग़लत का फर्क मिट जाता है क्रोध,जलन,अहंकार,हिंसा का समावेश हो जाता है! सही और ग़लत का फर्क मिट जाता है क्रोध,जलन,अहंकार,हिंसा का समावेश हो जाता ह...
वर्तमान ही इस जिंदगी को जन्नत बनाता है। वर्तमान ही इस जिंदगी को जन्नत बनाता है।
जानवरों का रखो ख्याल, ख़ुदा करेगा हित तुम्हारा है। जानवरों का रखो ख्याल, ख़ुदा करेगा हित तुम्हारा है।
और पेड़ की डाली पर लटक कर मौत को गले लगाता है। और पेड़ की डाली पर लटक कर मौत को गले लगाता है।
क्या इन्साफ दिलायेंगे जब न्याय खुद पैसों में बिक रहा है। क्या इन्साफ दिलायेंगे जब न्याय खुद पैसों में बिक रहा है।
जो "भूख" आवश्यकता है जीवन की, ताकत है यही "भूख" उन सत्ताधारी वर्गों की। जो "भूख" आवश्यकता है जीवन की, ताकत है यही "भूख" उन सत्ताधारी वर्गों की।
दुनिया को धोखा देता रहा वो मौत को न चकमा दे पाऐगा। दुनिया को धोखा देता रहा वो मौत को न चकमा दे पाऐगा।
हमारे हिस्से हड़प, गांव में सब बने आज सयाने। हमारे हिस्से हड़प, गांव में सब बने आज सयाने।
पर हर साल आज़ादी का तिरंगा पहराना हम नहीं भूले। पर हर साल आज़ादी का तिरंगा पहराना हम नहीं भूले।
क्या गुजरे पल और इंसान भुला देना आसान है ? नहीं ना क्योंकि गुजरा वक्त कभी लौटकर नहीं आ क्या गुजरे पल और इंसान भुला देना आसान है ? नहीं ना क्योंकि गुजरा वक्त कभी लौट...
मेरी आजादी है कहां मेरी दुनिया है कहां मेरी आजादी है कहां मेरी दुनिया है कहां
एक सुकून भरा एहसास हैं जो हमें आज़ादी देने वालो ने अपने खून से पाया हैं। एक सुकून भरा एहसास हैं जो हमें आज़ादी देने वालो ने अपने खून से पाया हैं।
सब ही तराने टूटे हैं हम खुद से ही रूठे हैं। सब ही तराने टूटे हैं हम खुद से ही रूठे हैं।
बेअसर हो चुकी है ज़िदगी, अब तो दुआ भी असर नहीं करती। बेअसर हो चुकी है ज़िदगी, अब तो दुआ भी असर नहीं करती।
हमारी नज़र हमसे ही सवाल पूछती है आईने में खोये ख़ुद के अक्स ढूंढती है। हमारी नज़र हमसे ही सवाल पूछती है आईने में खोये ख़ुद के अक्स ढूंढती है।
प्रमाणता को सिद्ध कर यह तेरी पहचान है। प्रमाणता को सिद्ध कर यह तेरी पहचान है।
जाने वाले तेरे क़दमो के, निशान यहाँ रखे हैं। जाने वाले तेरे क़दमो के, निशान यहाँ रखे हैं।
वक़्त ही तो है, गुजर ही जायेगा अब क्यूं तेरा भी अहसान रहने दूँ। वक़्त ही तो है, गुजर ही जायेगा अब क्यूं तेरा भी अहसान रहने दूँ।
कोई मुसलमान कभी मन्दिर नहीं मुड़ा और न ही कोई हिन्दू मस्जिद। कोई मुसलमान कभी मन्दिर नहीं मुड़ा और न ही कोई हिन्दू मस्जिद।