हे अन्नदाता !
हे अन्नदाता !
तुम नीम को आम कहो, आम कहूँगा
सुबह को शाम कहो, शाम कहूँगा
दिन को रात कहो, रात कहूँगा,
सूरज को चाँद कहो, चाँद कहूँगा
घूँसा को लात कहो, लात कहूँगा
दाल को भात कहो, भात कहूँगा
जो कहो तुम, वो काम करूंगा
राम को श्याम कहो, श्याम कहूँगा
कल कहो जो, आज करूँगा,
कराओ जो, वो काज करूँगा
परन्तु......
खाता हूँ जिस थाली में
छेद उसमें ना करूँगा
नमक हलाल हूँ मैं तो-
नमक हराम ना बनूँगा
खाता हूँ कसम, लेता हूँ संकल्प
आन-बान-शान-मान रखूँगा
नमक का है ऋण, लाज रखूँगा
बेईमान, वफादार ही सही, पर-
जग में रौशन, बस नाम करूँगा
काम नहीं खास, में आम करूँगा
ओ अन्नदाता !
तुम जो कराओ
वो काम करूँगा
वही नाम धरूँगा।