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Shriram Sahoo

Abstract

3.7  

Shriram Sahoo

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कुछ कविताएं

कुछ कविताएं

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नदी

निर्पेक्ष व

समभाव से

दोनों कूलों को

सींचती जाती है...।

अंततोगत्वा...

दोनों तटों को

काट खाती है...।।

****************

(२)#कोमल अहसासों को

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उजड़ा चमन,उजड़ा गुलिस्तां

कौन ले आएगा बहारों को ।

मतलबी है दुनिया सारी जब

कोउ दे सहारा बेसहारों को।।


जीते जी ढोने की आदत अब

हो सी गई जिंदा लाशों को ।

कौंन तवज्जो देता है"अकेला"

इन कोमल अहसासों को ।।

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(३)एक मुक्तक

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शब्द ही लगाते मरहम,

शब्द ही करते घाव जी।

शब्द के अर्थ समझिए-

शब्दों के है बड़े भाव जी।।

***********************

(४)#एक नव गीत

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साजन की प्रीत ।

सजनी गाए गीत

साथ जो मिला तेरा

वक्त जाएगा बीत ।।

जुदा होकर तुमसे

रहना भी हो कैसे ?

एक छोर हो तुम

मैं दूजा मनमीत ।।

एकप्राण दो तन,

मिले जबसे नयन ।

सङ्ग जियें सङ्ग मरें

यही जीवन की रीत।।

************************

(५)#मैं और तुम

************************

मैं

तुमको

मैं

बनाना

चाहता हूं.।

तुम

मुझे

तुम

बनाना

चाहते हो..।

बनाने के

इस

चक्कर में

ना तुम

तुम रहे

और

ना ही

मैं

मैं रहा...।



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