Shriram Sahoo
Drama
अब के होली में,
रहा नहीं उमंग।
शेष सब तो ठीक है,
बचा रहा हुड़ दंग।
कविता एक प्या...
हे अन्नदाता !
तुगलक
कुछ कविताएं
व्यंग्य क्षणि...
सेनेरयू
हाइकू
हुड़दंग
बसन्त पर हाइक...
समय/हाइकु
दिल में जगह दी जिसको, उसने ही घर जलाया था दिल में जगह दी जिसको, उसने ही घर जलाया था
मेरी लाश को चील कौवे नोच खाएंगे, पहले मैं अपनी कब्र खन तो लूं। मेरी लाश को चील कौवे नोच खाएंगे, पहले मैं अपनी कब्र खन तो लूं।
कहाँ हक मेरा इन फूलों पर या इस बगिया पर, कहाँ हक मेरा इन फूलों पर या इस बगिया पर,
क्यों मुझको कूदना पड़ता है? क्यों मुझको झुकना पड़ता है? क्यों मुझको कूदना पड़ता है? क्यों मुझको झुकना पड़ता है?
एक कहानी दिल को छू गई, किसी की ज़िन्दगी परदे की कहानी बन गई एक कहानी दिल को छू गई, किसी की ज़िन्दगी परदे की कहानी बन गई
मन है पावन, फिर भी आँखों में सावन, फिर भी गंगा में नहाऊंगा, प्रेम के लिए मन है पावन, फिर भी आँखों में सावन, फिर भी गंगा में नहाऊंगा, प्रेम के लिए
धीरे धीरे समय बीतने लगा, कॉलेज एक घर लगने लगा। धीरे धीरे समय बीतने लगा, कॉलेज एक घर लगने लगा।
ये धूंआ कहां से उठता है, जी हां धूंआ कहां से उठता है। ये धूंआ कहां से उठता है, जी हां धूंआ कहां से उठता है।
मरीज़ ये सोचकर दुखी कि डाक्टर की फीस कैसे बचाऊं, डाक्टर का दुख मरीज़ का बिल कैसे बढ़ाऊं मरीज़ ये सोचकर दुखी कि डाक्टर की फीस कैसे बचाऊं, डाक्टर का दुख मरीज़ का बिल क...
यौवन के उस नशे में, इस मन को निथार लूं। यौवन के उस नशे में, इस मन को निथार लूं।
हर इंसान अपने ज़मीर और आत्मा से, इतना दूर क्यों है ? हर इंसान अपने ज़मीर और आत्मा से, इतना दूर क्यों है ?
पहरेदार के हुंकार से, पहरेदार हुआ मगन ! पहरेदार के हुंकार से, पहरेदार हुआ मगन !
उसके हर अदा हर शोखी, मेरे आत्मा में स्थिर थी। वो शाम भी अजीब थी, वो मेरे बहुत करीब थी… उसके हर अदा हर शोखी, मेरे आत्मा में स्थिर थी। वो शाम भी अजीब थी, वो मेरे बहुत...
तुम सारी औरतें यह जान लो कि इक्कीसवीं सदी में भी तुम्हारी मर्जी नहीं चलेगी...... सिर्फ और सिर्फ हम... तुम सारी औरतें यह जान लो कि इक्कीसवीं सदी में भी तुम्हारी मर्जी नहीं चलेगी........
चार ने मुझे कंधों पे उठाया, एक जलती हाण्डी पकड़े आगे चला चार ने मुझे कंधों पे उठाया, एक जलती हाण्डी पकड़े आगे चला
उसके साथ होने के एहसास का अपनी रूह को इत्तला कर रही थी मैं उसके साथ होने के एहसास का अपनी रूह को इत्तला कर रही थी मैं
आज फ़िर खिल आया है एक sunday क्या मैं हफ्ते भर की दूरी के दर्द मिटाऊंगा आज फ़िर खिल आया है एक sunday क्या मैं हफ्ते भर की दूरी के दर्द मिटाऊंगा
जैसे समंदर सात दूर चली माना तू थी ही पराया धन। जैसे समंदर सात दूर चली माना तू थी ही पराया धन।
फिर भी ईश्वर को हम पर रहम नहीं होता।। फिर भी ईश्वर को हम पर रहम नहीं होता।।
फिर डर किस बात का है, जब हिम्मत भी बहुत है, जुनून भी बेहद है। फिर डर किस बात का है, जब हिम्मत भी बहुत है, जुनून भी बेहद है।