लफ़्ज़ों के....
लफ़्ज़ों के....
लफ़्ज़ों के गुलदस्ते में
चाहत की बात
सब करते हैं
चाहत की चाहत
आरज़ू नहीं किसी की
दिल में रखते है
सब बात लिहाज़दारी की
और लफ़्ज़ों के गुलदस्ते में
मुस्कुराहट साथ रखते है
अदावत की तसल्ली
कौन किसको दे रहा है
किसको मिल रही है
दावतें इश्क़ की
कुछ तो राज़ भर रखे है
अंधेरों ने अपनी झोली में
सुबह की किरणों ने
कुछ तो चुगली
सुनी है इन रातों में
सजाये जो अंजुमन
कोई ख़ामोश
गुलफ्शां के साये में
एक हवा का तरन्नुम
बहुत है किसी की
यादों के लिए......