'लौटा दो '
'लौटा दो '
हे! जग के विकसित मानव, हम तुमसे गुहार लगाते हैं।
लौटा दो उस दौर को, जिस दौर में हम सीमित सुविधा में ही सुखी जीवन बिताते थे।
लौटा दो उस सीमित सुविधा को, शांत वातावरण को ,
लौटा दो प्रकृति की शुद्धता को, जिसमें हम खुशी-खुशी जीवन बिताते थे।
जल,समीर की जगह विष की प्याला नहीं हम पीते थे।
बहुत कर लिये अपनी सभ्यता का विकास, जरा इस बेबस धरा की व्यथा समझो तुम ,
अपने साथ साथ भावी पीढ़ी के अस्तित्व के बारे में सोचो तुम।
विकास की आड़ में तुम बहुत कर लिये अपनी प्रकृति से खिलवाड़, अरे जो बचा है,
उस पर भी अपनी निर्दयी क्यों गडाए हो?
जो शेष बचा है उसे तो सुरक्षित छोड़ो तुम।
लौटा दो उस दौर को।
