क्या सच है
क्या सच है
खूबसूरती की पराकाष्ठा को भेदता
ये हसीन मंज़र जो अभी आँखों के समक्ष है
सच है या मृगतृष्णा का एक और फलसफा है
ये जो अनवरत बहता नीला पानी है ,
सच है या इस नीले आसमान की परछाई में रमा
महादेव के नीलकंठ सा निरंतर रगो में घुलता गरल-सा
साँसों में उमड़ता दमा है,
ये लाल सफ़ेद पीले गुलाबी सुमन,
ये जो इठलाती-बलखाती बेलों पर जीवन का रसपान करती
रंगबिरंगी तितलियों की मनभावन अंगड़ाई ये अठखेलियां
ये अबोध बालक की नादान मुस्कान ,
यह सरल मासूमियत शाश्वत तो है ना, की
ये सब इंसान के काली साये से बहुत दूर है ना ,की कहीं यह सब भी
सुबोधता की चाशनी में डुबोई इन
राजनेताओं की रणनीति ,और कूटनीतियों का हिस्सा तो नहीं है ना,
बस एक पानी का बुलबुला नहीं है ना ,पर
समुन्दर में अनवरत बहते पानी की
उम्मीद और उत्कर्ष से भरी लहर है ना
जो हर बारी नुकीले पत्थर ,पठार ,चट्टानों से टकराकर ,
फिर से आने का वादा कर
फिर एक बारी चकनाचूर होने ,
ज़िन्दगी को जीना सिखलाने खुद को
न्योछावर करने निकल पड़ती है