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ज्योति किरण

Drama Tragedy Thriller

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ज्योति किरण

Drama Tragedy Thriller

क्या फ़र्क पड़ता है

क्या फ़र्क पड़ता है

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क्या फ़र्क पड़ता है,

आप क्या हैं या कौन हैं। 

जब इंसानों की बस्ती में,

इंसानियत ही मौन है।।


घात लगाकर बैठे हैं, 

चंद गिद्ध मुनाफाखोर।

कैसे कोई पार लगेगा,  

कहाँ मिलेगा छोर।।


महामारी की आई सुनामी,

डूब रहे सब लोग। 

लील रहा है इंसानों को 

आये दिन यह रोग।।


एक समंदर नाव अलग है,

डूब रहे कुछ हाथ।

मुश्किल समय है देना होगा, 

एक-दूजे का साथ।


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