इश्क़ नादां था,सयाना हो गया
इश्क़ नादां था,सयाना हो गया
दर्द से रिश़्ता पुराना हो गया।
मुस्कुराये अब ज़माना हो गया।।
जिस घड़ी टकरा गई उनसे नज़र_
उस घड़ी ये दिल रवाना हो गया।।
पास उनके, दूर ख़ुद से हो गये_
ख़ूब उल्फ़त का बहाना हो गया।।
गुनगुनाती है अधूरी आरज़ू _
साँस की लय से तराना हो गया।।
अश्क़ आँखों से कभी छुपते नहीं_
एक किस्सा था, फ़साना हो गया।।
धड़कनों ने की सभी ग़ुस्ताख़ियाँ_
बेवजह ही दिल दीवाना हो गया।।
कुछ हमारी भी सुनो ऐ ज़िन्दगी_
अब सितम ये आज़माना हो गया।।
क्या कहे, क्या ना कहे ज्योतिकिरण_
इश्क़ नादाँ था सयाना हो गया।।