पिता
पिता
पिता हर हाल में जीता है,
बस परिवार की ख़ातिर।
सभी की ख़्वाहिशों और बस,
ज़रा से प्यार की ख़ातिर।।
ज़रा-सी आँच भी अपनों को
इनके छू नहीं पाती
खड़ा है ढाल बन कर हर पिता
घर-द्वार की ख़ातिर।।
पिता हर हाल में जीता है,
बस परिवार की ख़ातिर।
सभी की ख़्वाहिशों और बस,
ज़रा से प्यार की ख़ातिर।।
ज़रा-सी आँच भी अपनों को
इनके छू नहीं पाती
खड़ा है ढाल बन कर हर पिता
घर-द्वार की ख़ातिर।।