चिरपरिचित यादें
चिरपरिचित यादें
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मेरे बचपन की यादों का वो बक्सा खुल गया इक दिन।
थोड़े आँसू, थोड़ी खुशियाँ,थोड़ी-सी हसरतें भी थीं।।
चली आती हैं अक्सर बिन बुलाये वो हसीं घड़ियां।
थोड़ी चंचल, थोड़ी बेबाक, थोड़ी-सी अटपटी भी थीं।।
पिटारा बंद कर के ज़िन्दगी को जी रहे थे हम।
कभी सुख-दुख, कभी तन्हाइयों को पी रहे थे हम।।
अचानक एक झोंके ने हवा के हमको झकझोरा।
थोड़ी मद्धम, थोड़ी ताज़ा, थोड़ी-सी चिरपरिचित थी।।