क्या कहना !
क्या कहना !
वीरान रातों का क्या कहना,
तुम्हारी सभी बातों का क्या कहना !
समझ जाये अगर उन जजबातों को, फिर भी
अनसुलझे सभी सवालातों का, क्या कहना !!
ख्वाब देखते हैं सभी, ऐसी खबर थी मुझको
फिर अगर तुम भी हम भी देखे, तो क्या कहना !
टूटना तो रस्म अदायगी समझते हैं, आजकल सभी,
मिल कर बिखर जाये, तो फिर हालiतों क्या कहना !!
गर कोई इल्म या आदत है, उनकी भूल जाने की,
किसी को भी ना सुनने, ना सुनाने की !
याद रखना ये अनुभव अपना, सबका मगर ,
खाक से भी आग निकल जाये तो क्या कहना !!