क्या हुआ जो
क्या हुआ जो
क्या हुआ जो, अचानक हुये नाराज,
जिसकी लाठी होती, उसका हो राज।
सम प्रकृति रहनी चाहिये, जग कहता,
अच्छे कर्म के बल, होता जन को नाज।।
क्या हुआ जो, लगता है वो रोया रोया,
सुधबुध खो बैठा, कहीं ध्यान है खोया।
वैसा ही जन काटेगा, जैसे बीज बोया,
देखने में लगता है, वर्षों से नहीं सोया।।
क्या हुआ जो, रोनी सूरत बना डाली,
लगता है धन खत्म, जेब अब खाली।
लाख कोशिश करो, नहीं मार पाएगा,
सारे जगत का होता, वो ही एक माली।।
क्या हुआ जो, न हो गया अब प्रसन्न,
चहुं ओर फूल खिले, माह है अगहन।
पतझड़ के मौसम में, मन होता दुखी,
मन की बात मानेंगे, सब कुछ है मन।।
क्या हुआ जो, शुरू हो गई है बरसात,
अंबर पर बादल थे, नहीं कोई हालात।
नभ काले बादल छाये, दिन लगता रात,
घर में बैठ जाना, कहते आये मेरे तात।।
क्या हुआ जो, देश अच्छे नहीं हालात,
कहीं चोरी डकैती, चलती गम बारात।
लाख यत्न कर ले, आएगी जरूर वो रात,
अपने ही जन, अपनों को जड़ेंगे लात।।
क्या हुआ जो, सीमा पर वीर हैं तैयार,
पूरा भारत देख रहा, देते जन जन प्यार।
दुश्मन भी हैं कांपते, ऐसे मेरे देश वीर,
युद्ध में अगर जा डटे, कभी नहीं हार।।
क्या हुआ जो, हर इंसान आज परेशान,
धन दौलत के बल, होती जन पहचान।
साधु संत यह मानते, धन काम न आये,
चला जाता है जग से, रह जाती है शान।।