कुदरत
कुदरत
कुदरत से खिलवाड़ का नतीजा इंसानों ने पाया है,
चारों तरफ खामोशी पसरी कितना सन्नाटा छाया है।
एक अपनी खुशी की खातिर कितने जंगल छांटे हैं,
इंसानों ने लाखों पशु और पक्षी निर्दयता से काटे हैं।
हवा पानी मिट्टी आदि सबका ही तो बंटाधार किया,
धरती पर खुशहाली की उम्मीदों को भी मार दिया।
इसी वजह से दुनिया के ऊपर महामारी का साया है,
कुदरत से खिलवाड़ का नतीजा इंसानों ने पाया है।।
बढ़ती जनसंख्या का बोझ धरती बमुश्किल सहती है,
फिर भी इसे जख्म देने की इच्छा इंसानों को रहती है।
अप
ने सुख की लालसा में आकाश तक पैर पसारे हैं,
वर्चस्व बनाये रखने के लिए कितने ही निर्दोष मारे हैं।
हरी भरी इस दुनिया की कैसी बदल गई अब काया है,
कुदरत से खिलवाड़ का नतीजा इंसानों ने पाया है।।
नकली सामान बना-बनाकर जीवन संकट में डाले हैं,
ईमान की दुकानों पर लगवा दिए भ्रष्टाचार के ताले हैं।
आगे बढ़ने की होड़ में नैतिकता को ही पीछे छोड़ा है,
औरों को नुकसान पहुंचाने को हर एक नियम तोड़ा है।
अब कुदरत के बदला लेने पर किसलिए पछताया है,
कुदरत से खिलवाड़ का नतीजा इंसानों ने पाया है।।