हिन्दी
हिन्दी
हिन्दी तो मात्र एक भाषा ही लगती है,
भला कहाँ यह अब मातृभाषा रह गई है?
अपनों ने ही जिसको दोयम दर्जा दिया,
उस बेटी की तरह ही यह सब सह गई है।।
वैसे तो 1949 में ही राजभाषा बन गई,
पर आज तक राष्ट्रभाषा ना बन सकी है।
इतने सालों से भटक रही है सम्मान को,
अच्छा यही है कि अब तक ना थकी है।।
मैकाले के मानस पुत्रों ने तो सदा से ही,
हिन्दी भाषा को जमकर खूब सताया है।
जो बोलते और लिखते हैं हिन्दी गर्व से,
उनका देश में ही गया उपहास बनाया है।।
यहाँ हिन्दी की कद्र करने वालों की कमी,
और बस अँग्रेजी का ही ज्यादा सम्मान है।
सोचिए कि यदि मातृभाषा ही उपेक्षित हो,
तो कैसे कोई भी देश बन सकता महान है??
मॉम-डैड कहते-कहते जो कभी ना थकते,
माँ-पिता का असली अर्थ ना जान सके हैं।
पाश्चात्य सभ्यता में रंगे हुए हैं ये पूरी तरह,
संस्कारों के महत्व को ना पहचान सके हैं।।
विश्व में हर देश जब अपनी मातृभाषा को,
साथ लेकर प्रगति-पथ पर बढ़ सकता हैl
तो हिन्दी को सर्वव्यापक बनाने के बाद,
कैसे ना भारतीयों का पेट भर सकता है??
यही हाल रहा और समय पर हम ना जागे,
तो हिन्दी भी एक दिन लुप्तप्राय हो जाएगी।
देववाणी संस्कृत की भाँति हिन्दी भी कभी,
किसी कोने में बदहाली के आंसू बहाएगी।।
भले ही कोई समझे चाहे ना समझे मग़र,
मेरे दिल का तो सच्चा अभिमान है हिन्दी।
आओ राष्ट्रभाषा को उसका सम्मान दिलाएं,
कि हम सबकी आन-बान और शान है हिन्दी।।