STORYMIRROR

Vibhav Saxena

Inspirational

4  

Vibhav Saxena

Inspirational

हमारी वसुंधरा

हमारी वसुंधरा

1 min
323

जिस वसुधा पर ईश्वर ने भी बार-बार स्वयं जन्म लिया है,

देखो उस पृथ्वी का मानव ने आज ये कैसा हाल किया है?

मनुष्य के पापों का निशिदिन ही यह धरती बोझ ढोती है,

और उसके अत्याचारों से पीड़ित होकर निरन्तर रोती है।

पुकारती है वसुंधरा कि मानव अब तो इस नींद से जागे,

प्रकृति से जुड़ जाए हृदय से और स्वार्थसिद्धि को त्यागे।

यदि मनुज इस पृथ्वी की रक्षा करने में सफल हो जाएगा,

तभी सच्चे अर्थों में उसका अपना भी अस्तित्व बच पाएगा।

सो पहले जैसी हो यह पृथ्वी सारी और उसका दोहन बंद हो,

नदियाँ कल-कल बहें यहाँ जीवों का विचरण भी स्वच्छंद हो।

वृक्षों से आभूषित हो यह धरती और प्रदूषण भी नियंत्रित हो,

इतनी समृद्ध बने वसुधा जिस पर हर खुशहाली आमंत्रित हो।

कुछ ऐसा सार्थक करें हम कि हो सके मानव का भी गुणगान,

हम सब सुखी होंगे तभी और कायम रहेगी प्रकृति की मुस्कान।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational