कुछ तो रहने दो
कुछ तो रहने दो
हल्की चिंगारी इश्क की
जल रही है तुम्हारे अंदर भी
नर्म धुआँ उठने तो दो
सबकुछ खत्म हो जाएगा तो
मेरी रचनाएँ पनाह पाने
कहाँ जाएगी मेरे बाद
तुम ही तो इनके वारिस हो
तुमको सोचा तुमको लिखा
तुम ही तुम धड़कते हो
मेरी कल्पनाओं को ज़िंदा रहने दो
मत पानी छिड़को थोड़ी हवा तो दो
अलाव में एहसास के कोयले ड़ालो
जी उठेंगे शोले प्रीत के
गिरह की गांठ को मजबूत करो
कुछ साँसे अभी मेरे भीतर बाकी है
सौंप दूँ अपना सबकुछ तुम्हें
फिर चले जाना
पहचान के कुछ हल्के अंश
दोनों के दरमियां रहने तो दो।