कश्मीरी-पंडित
कश्मीरी-पंडित
हरदम सच है छिपता रहा
अपराध का मनबल बढ़ता रहा,
कोशिश पूरी हुई थी ये
सच कश्मीरी पंडितों का पता न चले।
एकबार गुनाह तो बता देते
खता थी क्या ये कह देते,
मिट्टी कश्मीर का तो उनका भी था
अपने धर्म में आस्था
रखना उनका भी तो हक था।
तुमने पूरी कोशिश की मिट जाये
हिंदुत्व न अब बच पाए,
निर्दोष प्रजा कश्मीर के थे वो
पर तुम बेवजह उनका नरसंहार किए।
मस्जिदों से नारे लगवाए
हिंदुओं अपना दुश्मन तुम बताए,
जिस धर्म से ये धरा है जुड़ी हुई
तुम उसे ही मिटाने चले।
पर बहुत हुआ सम्मान अब
गलती से हम सीख लिए,
अपने धर्म की रक्षा को
अब हरदम हम भी है सज्ज हुए।