कशिश उस आवाज की
कशिश उस आवाज की


आज शब्द
क्यों नहीं मिल रहे
लिखना तेरे लिए
पर लिख नहीं पा रही
आज ये क्या हुआ
हाथ क्यों नहीं चल रहे
शब्द क्यों नि:शब्द पड़े
आँखे बोझिल होने लगी
तुम्हारी आवाज
पल पल गूँज रही कानों में
इस लिए शायद
मैं लिख नहीं पा रही
तुम ख्यालों में घूम रहे हो
तुम निगाहों में तैर रहे हो
हृदय में नजरों में
गूँज रही हर जगह
बस तुम्हारी आवाज
कशिश से भरी
मैं वही सोचती जा रही
सुनती जा रही
जागने से सोने तक
इस लिए शायद
आज मैं लिख नहीं पा रही।