कोई
कोई
शोर मे सुनता न हो जब सदा कोई
अक़ीदे से झुका फिर आसमां कोई
मेल खाती नही आवाज़ से धड़कन तेरी
तुम बताते हो कोई, धड़कता है कोई
इन बहारों को न कर किताबों से अलग
इसमें भी मिलता हे अफ़साना कोई
मैं तेरे बाद महताब ढूंढने निकला
चाँद के पास तो सितारा था कोई
तोड़ दे रिश्ता या अब कर ले मोहब्बत से गुरेज़
फिर भी चुन लूँगा तेरे दिल से ग़ज़ल कोई
मेरी दीद को मोहलत नहीं आसमानों से
और आँसुओं को सलीका नहीं कोई
एक नदी एक ताज एक चाँद और तुम
जन्नत ज़मीं पे उतारता है कोई
जावेदा रहता नहीं एक ज़ऱरा भी ज़मीं पे
न हुआ इबादत के सिवा पैकर कोई