कली से फ़ूल
कली से फ़ूल
एक माली ने बोया है एक बीज मिट्टी में
एक तरफ़ एक बीज पनप रहा है माँ की गोद में।
दिन रात की मेहनत से बीज डाली बन जाता है
माँ की कोख में पोषित होकर वह बीज भी बच्चे
का स्वरुप लेता है।
एक दिन सूरज की किरणों से डाली पर कली निकल
आती है
एक प्यार की निशानी पिता की परछाईं से एक बच्ची
जन्म लेती है।
कली खिलते ही पहली बार रंग बिरंगी दुनिया देखती है
नन्ही सी बच्ची मुस्काते हुए माँ की गोद में खिलखिलाती है।
सुगंध कली की फ़ेल कर पूरी बगिया महकाती है
मंद मंद किलकारियों से घर की दीवार गूंज आती है।
देखते ही देखते एक दिन कली फ़ूल बन जाती है
नन्ही सी बच्ची खेलकुद कर पढ़ लिख कर एक
दिन शबाब कहलाती है।
फ़ूल की सुंदरता को देख सब उसकी और खिंचे
चले आते है
यौवन की खूबसूरती देख हर कोई आकर्षित हो जाते है।
मानव फ़ूल को तोडक़र कोमल पंखुड़ियाँ मसल कर
फेंक देता है
घर की प्यारी को उठाकर सौंदर्य को अभिशाप में
बदल देता है।
फूलों को बगिया में रहने दे उसकी जगह ईश्वर के
चरणों में है
है मानव गर लक्ष्मी इतनी प्यारी है तो हर नारी की
जगह मंदिर में है।
