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Satyendra Gupta

Abstract

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Satyendra Gupta

Abstract

कितने अच्छे लगते हैं

कितने अच्छे लगते हैं

2 mins
354


आते जाते लोग,

हंसते मुस्कुराते लोग,

दूसरों की सुख दुःख में साथ निभाते लोग,

फूलों की तरह खिलखिलाते लोग,

दूसरो की खुशियों को अपनाते लोग,

कितने अच्छे लगते हैं।


हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई,

हंसते मुस्कुराते भाई भाई,

मनाते त्यौहार, एक साथ खुशियां कितनी लाई,

एक साथ रहते जब सभी मजहब के,

लगता की एक बगीचा में फूल है कई,

ईद में जब हिंदू मुस्लिम मिलते है गले,

होली में जब रंग अबीर एक साथ चले,

कितने अच्छे लगते है।


पर न जाने अब किसकी नजर लग गई है,

एक दूसरे की जान पे आफत आ गई है,

जो कभी नहीं रह पाते थे एक दूसरे के बिना,

राम और रहीम की दोस्ती कहां चली गई है,

अब मुहर्रम और रामनवमी में दंगे है हो जाते,

थोड़ी थोड़ी सी बातों में है सिर कट जाते,

काश वही प्रेम दुबारा आ जाते,

हिंदू मुस्लिम भेदभाव खत्म हो जाते,

जब रहते है दोनो प्रेमभाव से,

कितने अच्छे लगते है।


अब न जाने मंदिर, मस्जिद में प्रेम नही बसता

अब न जाने मंदिर, मस्जिद दोनो को अलग क्यू है करता

कभी तीन तलाक में उलझते है देखा,

तो कभी बुरका पे सवाल उठता है देखा,

शिक्षा नही सिखाता आपस में बैर करना,

मजहब के लिए अपनों को कटते है देखा,

क्या से क्या हो गया अब समझ में नहीं आता,

जब सभी धर्मो के लोग प्रेम को जाते समझ,

कितने अच्छे लगते है।


अल्लाह या भगवान को हमने नही देखा,

लेकिन इनके लिए सभी को लड़ते है देखा,

अब बंद करो लड़ना आपस में,

भेदभाव मिटा दो रहो प्रेम से आपस में,

दुनिया फिर से दिखेगी भारत को,

सभी लोग जब करते है आदर सभी धर्मों को,

कितने अच्छे लगते है,

कितने अच्छे लगते है।।


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