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मिली साहा

Abstract Inspirational

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मिली साहा

Abstract Inspirational

अजब कहानी दोस्ती की

अजब कहानी दोस्ती की

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जात पात और धर्म के नाम पर कभी न करना अभिमान,

इंसानियत है सबसे बड़ा धर्म चाहे पढ़ लो गीता या कुरान,

शुक्र है कि हवाओं का कोई अपना अलग धर्म नहीं होता,

अगर होता कितनों का दम घुटता कितनों की जाती जान।

   

एक ही ईश्वर के बंदे हम सब फिर ये फर्क कहां से आया,

धर्म,जाति के नाम पे समाज में कैसा काला बादल छाया,

एक ही है वह ईश्वर कोई अल्लाह कोई भगवान कहता है,

इंसानियत के लिए ज़हर बन रहा यह जातिवाद का साया।


लड़ते जो धर्म के नाम पर वो धर्म का मतलब नहीं जानते,

कितने ही रिश्ते समाज में धर्म के नाम पर कुर्बान हो जाते,

कोरोनावायरस से भी खौफनाक ये जातिवाद का वायरस,

घातक परिणाम जानकर भी लोग इससे बचना नहीं चाहते।


पर एक मासूम बचपन कहां देखता है धर्म और जात-पात,

वैसे ही जात-पात व धर्म से अछूति होती है दोस्ती की बात,

दो दोस्तों की अजब कहानी पनपी थी एक आसमां के नीचे,

ना धर्म जानते ना जात दोस्ती थी उनकी सबसे बड़ी सौगात।


एक राम था एक रहिम ये नाम ही दोस्ती के लिए काफ़ी था,

दुनिया के हर धर्म से ऊंचा बस दोस्ती ही सबसे बड़ा धर्म था,

हंसते -खेलते बड़े हुए दोनों दोस्ती और भी मजबूत होती गई,

इतने वर्षों की दोस्ती में कभी एक दूसरे का धर्म नहीं पूछा था।


मंदिर भी जाते मस्जिद भी उनके लिए अल्लाह ईश्वर एक था,

गीता भी पढ़ा दोनों ने कुरान भी कहां कोई अंतर कोई भेद था,

साथ खाते साथ पढ़ते भविष्य की चुनौतियां साथ साथ लड़ते,

हर बुरी नज़र से दूर थी दोस्ती बस एक दूसरे के लिए प्यार था


पर ये जातिवाद का जहरीला नाग कब किसको कहां डसेगा,

किसकी उजड़ जाएगी खुशहाल दुनिया कोई ना कह सकेगा,

उनकी हंसती -खेलती दोस्ती पर भी पड़ा इस ज़हर का असर,

धर्म के नाम पर हुआ दंगा और उनकी दोस्ती को निगल गया।


शोर शराबा हो रहा चारों ओर धर्म के नाम पर सब लड़ रहे थे,

कौन है किसकी तरफ़ एक-एक से धर्म और जाति पूछ रहे थे,

मजबूरी में दोनों को देना पड़ा अपने -अपने परिवार का साथ,

बंद मुट्ठी में अपनी दोस्ती को लिए दोनों बेबस लाचार खड़े थे।


इस दंगे में कितने रिश्ते टूट गए कितने घायल हुए हिसाब नहीं,

पर दोस्ती का रिश्ता जो घायल हुआ किसी के पास जवाब नहीं,

क्या गलती थी इनकी मज़हब देखकर तो नहीं की गई थी दोस्ती,

धर्म के नाम पर लड़ना सिखाए इंसान को ऐसी कोई किताब नहीं।


खूबसूरत बंधन दोस्ती का मंदिर,मस्जिद के नाम पर कुर्बान हुआ,

ज़ालिम ज़माने ने धर्म के नाम पर एक दोस्ती को मिलने ना दिया,

पर दिल से ना मिट पाई दोस्ती की खुशबू आज भी वो बरकरार है,

दोनों ने खाई कसम खत्म करेंगे ये ज़हर जिसने हमें अलग किया।


दोस्ती की खातिर ही सही जैसे समझे दोनों नौजवान इस बात को,

धर्म के नाम पर लड़ना सही बात नहीं इससे कष्ट होता समाज को,

कितने घर उजड़ जाते दंगों के नाम पर कितने रिश्ते जल जाते हैं,

खत्म करना है यह भेदभाव तो आगे आना पड़ेगा प्रत्येक युवा को।


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