उत्तराखंड के न्यायकारी देव ( मेरे गोलू देवता)
उत्तराखंड के न्यायकारी देव ( मेरे गोलू देवता)
हो न्याय व करूणा का सागर, दर्शा रही जीवन की कहानी,।
प्रिय देवभूमि उत्तराखंड के तुम, अनोखी तुम्हारी है अमरबाणी।।
कहलाए पौत्र हलराई के तुम, पिता कहलाए थे झालुराई।।
ग्वालियर कोट चम्पावत भुमि में, दि तुम्हें जन्म कलिंका माई।।
सात रानियों संग ब्याह रचाया, किंतु संतान न कोई जनाई।।
तत्पश्चात भैरव देव मनाए, समस्त व्यथा उन्हें कह सुनाई।।
भैरव देव अति प्रसन्न होकर बोले, ह्रदय से किए जा तु कर्म,।
भाग्य बन तेरा लुंगा स्वयं में, तेरे पुत्र रूप में जन्म।।
घनघोर वन में एक दिवस, आई समक्ष राजन के कलिंगा,
वीरता व सुंदरता द्वारा, जला गई वह दिप प्रेम का।।
वन के खुंखार दो पशुओं से, कलिंका राजन को बचाई थी।।
देख प्रदर्शन रूपवती का, शादी राजन ने रचाई थी।।
नहीं थी वह कन्या साधारण, साक्षात् थे पंचदेव पिता।।
प्रेम पुर्वक सौंप कलिंका राजन को, बिठा डोली में किया विदा।।
बढ़ते समय के कदमों संग, गर्भवती हो गई कलिंका माता।।
ईर्ष्यालु सात रानियों को, समाचार यह तनिक नहीं भाता।।
नौ माह कलिंका माई हेतु, रानियां रची अनेकों आडम्बर।।
दर्शाए गए मेरे बालगोरिया, जन्म पश्चात सिलबट्टा बनकर।।
नवजात मेरे बालगोरिया को, संदूक भीतर छिपाई रानियां।।
छोड नदि तट पर संदूक, राजन समक्ष सुनाई झुठी कहानियां।।
भयावह से भयावह साजिश, बाल न बांका कर पाई तुम्हारा।।
बन माता पिता किया लालन पालन, पकड़ नदी तट से मछवारा।।
गाथा अनुसार तुम्हें मछवारे ने, बड़े नाजों से पाला था।।
पुर्ण करने हेतु हट तुम्हारी, कांट का घोड़ा बना डाला था।।
पंचदेवों कि दिव्य शक्तियां , दिखाती स्वप्न में तुम्हें वह नजारा,।
प्रतिदिन स्वप्न में तुम ने देखा, रचाया जो आडम्बर रानियों के द्वारा।।
मानों न्याय हेतु निर्दोष ध्वनि इक , चीखं छींककर तुम्हें बुला रही हो,
ममतामई इक मां कि ममता , तुम्हारी याद में अश्रु बहा रही हो।।
करो प्रभु स्मरण गए जब, जलपान कराने घोड़े को तट पर।।
उपस्थित थीं वहां आठ रानियां, पकड़ नीर की गगरी भरकर।।
चुटकी ले इक दूजे से बोली, ऐसा खिलौना कोई देखा है क्या।।
क्या कांट का कोई खिलौना , जलपान करता देखा है क्या।।
मुस्कुरा तुम रानियों से बोले, सुनो छोटी सी इक कथा है।।
ज्यों कोख से सिलबट्टा जन्मे, त्यों कांट का घोड़ा जल पी सकता है।।
प्रश्न उठा कलिंका माई बोली, ऐसा क्यों कहते हो भला ?
नमन कर तुम माता से बोले, सात माताओं ने तुमको था छला।।
मय्या तुमने सिलबट्टा नहीं, नन्हा सा इक बालक जन्माया।।
हो महल में उपस्थित व्याख्या सारा, झालुराई के समक्ष सुनाया।।
न्याय का चक्र चलाकर तुमने, कठोर दण्ड रानियों को दिलाया।।
राजा झालुराई के पश्चात तुमने, न्यायकारी राजन का पथ पाया।।
बैठे हो न्याय दरबार सजाए, आज उत्तराखंड देवभूमि में,।
अनेक रोगों कि मिलती है दवा, रमाकर भस्म तेरी धुनी में।।
है बालगोरिया देव मेरे, प्रेम के पुष्प करो स्वीकार।।
बनकर न्यायधीश इस जीवन के, लगा दो डुबती नयया पार।।
करो दया ईष्ट देव ओ मेरे, अब तेरा ही सहारा है।।
युं तो न्याय हेतु अनेक है द्वार, मगर तु ही न्यायधीश हमारा है।।
अन्याय के बादल छाए हुए हैं, न्याय दे रहा नहीं दिखाई।।
क्या ले रहे प्रभु परिक्षा हो , या रूठ गए हमसे वाकई ?
करो ऐसी दया प्रभु, हारकर भी जो जाए जीत,।
जाकर लोभ, ईर्ष्या बुराईयों से विपरीत, लगा बैठे हम तुमसे प्रीत।।
लक्ष्य समीप हम स्वयं को पाएं, संग छुटे न चरण तुम्हारे।।
बन न्यायकारी राजा देवभूमि के, करना निवास सदा साथ हमारे।।
