वीर गाथा चाणक्य की
वीर गाथा चाणक्य की
इतिहासिक ब्राह्मण इक विख्यात, अत्यंत विद्वान व चमत्कारी।।
जन्म उपरांत ज्योतिष विद्या बतलाई, समाई विलक्षण विद्वता अति भारी।।
प्राणों की आहुति दे माता, कुलदीप जला कर गई रोशनी।।
सूर्य समान तेजस्वी वह बालक, कहलाया अमर प्रसिद्ध ज्ञानी।।
समस्त सृष्टि में बाजे डंका, चाणक पुत्र कौटिल्य का।।
कार्य अखंड भारत निर्माण का, अत्यंत प्रशंसनीय व अमूल्य था।।
भाग्य राज योग से ना खाया मेल, एकत्रित ना कोई मुद्र संपत्ति।।
कर सदुपयोग दिव्य महा ज्ञान का, कर डाली महा ग्रंथ अर्थशास्त्र की उत्पत्ति।।
सर्वप्रथम आचार्य विष्णुगुप्त कहलाए, तत्पश्चात भिन्न रूप हुए परिवर्तित।।
विष्णुगुप्त से चंद्रगुप्त रूप बनाए, सृजन कार्य हेतु कौटिल्य प्रचलित।।
भव्य शास्त्र रचनाओं द्वारा, दिखाएं दिव्य समाज को दर्पण।।
धरकर आचार्य रूप जीवन काल में, महान योद्धाओं को दिए प्रशिक्षण।।
मगध की सीमावर्ती नगरी में, निवासी आचार्य चाणक कहलाए ।।
डोर मगध की जिसने थामी, कदापि न आचार्य चणक को भाए।।
बने जो विपक्षी आचार्य, विरोध पूर्ण ध्वनि शासक लिया सुन।।
अन्य सैनिकों संग बैठक बिठाए, घिनौना मार्ग राजन लिया चुन।।
रचा घिनौना इक षड्यंत्र, ब्राह्मण हत्या को दिए अंजाम।।
राजद्रोह का आरोप लगाए, मिटाएं चाणक्य पिता चाणक का नाम।।
धड़ से शीष किया जुदा, फेंका मगध चौराहे पर।।
ले शपथ कहे पुत्र पिता से, प्रतिशोध लूंगा मैं चुन चन कर।।
कौटिल्य से जन्मा चाणक्य, उठाए गंगा जल हाथ में।।
शत्रु रक्त से धोऊंगा शाखा, करूंगा अन्न जल ग्रहण पश्चात में।।
बन सहायक आचार्य चाणक्य का,आसरा राधामोहन नामक ब्राह्मण दिए।।
गुप्त प्रतिभाओं से होकर परिचित, दाखिल दिव्य विश्वविद्यालय में किए।।
हुआ प्रारंभ वीर चाणक्य का, यहां से नवजीवन अध्याय।।
भार तक्षशिला नगरी का घटाकर, पुनः मगध नगरी में आए।।
आ पहुंची दिव्य घड़ी निकट, शेष चाणक्य प्रतिशोध की।।
धरकर राजा धनानंद को निगाह में, जली ज्वाला विरोध की।।
राजा नहीं काला धब्बा इक, स्तर जो प्रजा का डुबो रहा।।
होकर बेसुध हिंसा की लत में, मान प्रतिष्ठा मगध की धो रहा।।
तक्षशिला आचार्य का रूप बनाए, अनेकों यत्न चाणक्य किए।।
देख जंजीर विवशता की राजन, उपहास आचार्य का बना दिए।।
धारण कर वेश ज्योतिष का, आचार्य प्रस्थान किए वन में।।
खोज रहे सेवक इक सच्चा, बस गए चंद्रगुप्त मन दर्पण में।।
माता जिनकी मुरा कहलाई, योद्धा स्वयं वह उच्च स्तर के।।
आचार्य चाणक्य परम गुरु कहलाए, देख भव्य खेल प्रतिभाओं के।।
चंद्रगुप्त मौर्य नामक यौद्धा वह प्रसिद्ध, सौभाग्य जिसे हुआ यह प्राप्त ।।
जीवन लक्ष्य हुआ सुनिश्चित, प्रतिक्षा चाणक्य की हुई समाप्त।।
लिए प्रशिक्षण चंद्रगुप्त समित, अन्य आदिवासी मिल जुलकर।।
बना भव्य योजना चाणक्य, धनानंद साम्राज्य फैंके उखाड़ कर।।
चाणक्य मनसा पूर्ण हुई, प्रतिशोध की ज्वाला गई बुज।।
हुआ जन्म मौर्यकाल का, इतिहास दे रहा गवाही सचमुच।।
नवीन प्रजा का हुआ निर्माण, चंद्रगुप्त कहलाए वीर सम्राट।।
विष्णु गुप्त (चाणक्य)बने स्वयं महामंत्री, बनी मौर्य कालीन सेना अत्यंत विराट।।
बनकर सारथी चंद्रगुप्त संग, चमत्कारी योजनाएं चाणक्य बनाते।।
निभाए दायित्व महामंत्री का, जीवन मार्गदर्शन राजन का कराते।।
आगामी पीढ़ी चंद्रगुप्त की, गुरु चाणक्य को बनाई थी।।
बिंदु सराय अशोक सम्राट को, दिशा चाणक्य ने दिखाई थी।।
चाणक्य रथ पर होकर सवार, इक दिवस चल दिए वन की ओर।
घटना बनी सदैव रहस्यमई, समाप्त हुआ चाणक्य का दौर।।
उल्लेख चाणक्य की प्रतिभा का, बौद्ध,ग्रंथ,महा वंश जैसे पुराणों में।।
होती है गणना व होती रहेगी, सष्टि के दिव्य विद्वानों में।।