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Sangeeta Tiwari

Inspirational

4  

Sangeeta Tiwari

Inspirational

महर्षि दयानंद सरस्वती

महर्षि दयानंद सरस्वती

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चिंतक वह आधुनिक भारत के, कहलाए आर्य समाजिक मुख्य संस्थापक।।

      मूल शंकर नामक बालक विख्यात, थे स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य समर्थक।।

       आजीवन रूप धरा सन्यासी, हृदय भीतर सनातन धर्म बसाया।।

              अनेकों शास्त्रों के बन अध्ययनरत, उजागर स्तंभ प्रकाशित करवाया।          

अविस्मरणीय दिवस आया एक, 12 फरवरी 1826 में गुजरात।।

            दयानंद सरस्वती हुए अवतरित, पिता कहलाए करसन लालजी व यशोदाबाई मात।।

 आया महाशिवरात्रि का अवसर पावन, उपवास धरे बाल मूल शंकर ।।

        आजीवन शिव को आराध्य बनाएं, हरि गुण गाए वह जमकर।।

               पारिवारिक सदस्य जो बालपन में गवा, दिव्य पड़ा मस्तिष्क में प्रभाव।।

        जीवन मरण रहस्यमई द्वार खटखटाया, प्रश्नों में था अत्यंत गहराव।।

           गंभीर चिंतित थे मात-पिता, बालक जो किया असाधारण प्रश्न।।

             अहम निर्णय लिए मिलजुल कर, किशोरावस्था में विवाह होगा संपन्न।         

 किंतु बालक से सहमति न मिली, प्रस्ताव दयानंद सरस्वती जी ठुकराए।।

        मोह माया का कर परित्याग, स्वामी सत्य खोज में निकल आए।।

             बनकर पंथीन वह निकल पड़े, गुरु विरजानंद को राहों में पाया।।

           पाणिनी व्याकरण व वेद वेदांग का अध्ययन, पूर्ण रूप में मूल शंकर को कराया।।

  आई जो गुरु दक्षिणा की घड़ी, सफल उपयोग की मांगी दक्षिणा।।

            अज्ञान रूपी अंधकार मिटाकर, जन-जन समक्ष बनो प्रेरणा ।।

               मूल शंकर गुरु को दे वचन, संपूर्ण देश में भ्रमण किए।।

                    प्रवेश कर हर हरिद्वार में, पाखंड खंडनी परचम लहरा दिए।।

               प्रवेश कोलकाता नगरी में पाकर , केशव चंद्र सेन ,देवेंद्र ठाकुर बने परम मित्र ।।

   मातृभाषा यहां से अपनाई,व शरीर में धारण किए वस्त्र।।

                 वेद पुराणों को बना आधार, आर्य समाज स्थापना कर डाली।।

                प्रत्येक धर्म मोर्चा कर प्रारंभ, मशाल बुद्धिमता की जला डाली।।

            अन्य नगरों में पहुंच सनातन धर्मी ने, धर्म ग्रंथ को किया प्रमाणित ।          

प्राचीन विद्वान धरे शीश चरणों में , प्रचंड प्रवक्ता को किया सम्मानित।।

       एकटक ध्वनि कुरितियों में उठाई , अंधविश्वास व पाखंड किया खंडित।।

        थे माने जाने परम समाज सुधारक , अध्यात्म व पौराणिक बल से कराया परिचित। 

धार्मिक व सामाजिक पुस्तक निर्माता, रचना वर्णित शुद्ध संस्कृति में।                

मान हिंदी को सहज सहयोगी, लिख डाली पुस्तक आर्य भाषा में।।

     साधारण शब्दों में नहीं वर्णन , प्रत्येक पृष्ठ अत्यंत बलशाली।।

               आदर्श अनुसार चला जो हिंदुस्तानी, पुनः राष्ट्र कहलाएगा वैभवशाली।।

         मुख्य कृतियों का करते हम वर्णन , प्रथम कृति सत्यार्थ प्रकाश है।।

           सनातन वैदिक धर्म का जिसमें प्रतिपादन, मत मतांतरों समीक्षा अंतिम समुल्लास है 

दूरी है आर्य छेशयरतनमाला, अन्य परिभाषा जहां वर्णित।।

                 ईश्वर धर्म-कर्म का बोलबाला, पूर्ण व्याख्या यहां सम्मिलित।।

                तीजी गौ करुणानिधि कहलाई, चलाई गोरक्षा भव्य आंदोलन।।

              गौ समेत अन्य पशुओं का, सुरक्षा कवच बनकर हो लालन-पालन।।

         चौथी पुस्तक व्यवहारभानु कहलाई, व्यवहार रखा जहां सर्वोपरि।।

           सहज व्यवहार से जोड़ो नाता , छवि हो जिसकी करुणा भरी ।।

             नामांकित पंच में स्वीकार पत्र, अनेकों दायित्व जहां सौपे।।

                महर्षि की मृत्यु पश्चात जहां, कार्य कदापि ना थम सके ।।

                   छठी पुस्तक है संस्कृत वाक्य प्रबोध, लघु वाक्य जहां विभिन्न विषयों में ।।

    उपयोगी संस्कृत भाषा को बनाएं, आधारित आपत्ती निष्कर्षों में।।

            हत्या षड्यंत्र बने अनेकों , विभिन्न माध्यम शत्रु अपनाएं।।

                अनेकों विष उपयोग में लाकर, मृत्यु महर्षि को दिलाना चाहे।।

               किंतु प्रयास हुए विफल, दम था महर्षि के संघर्षों में।।

                   हिंदुस्तानी ह्रदय में अमर हुए, दिव्य प्रदर्शन दिया कार्यकाल वर्षों में ।।

           परिस्थितियां यह दर्शाती हैं, अंग्रेजी शासक का षड्यंत्र कोई गहरा।।

          महर्षि मृत्यु को दिया अंजाम , वेश्या पाकर अवसर सुनहरा।।

               महाराज जसवंत सिंह नामक राजा, प्रेमी अपार महर्षि का।।

                  वेश्या संग राजन के संबंध पर, दयानंद महर्षि राजन को टोके ।।

              बात महर्षि की राजन स्वीकारें, तोड़ डाले संबंध वेश्या संग।।

           अत्यंत क्रोधित हो वेश्या, काला महर्षि को दिखाई रंग।।

                    पीसा कांच दूध में डाल, मृत्यु घाट महर्षि को उतारा।।

                    पश्चात सभा के समक्ष उसने, मांग क्षमा अपराध स्वीकारा।।

                 उदार हृदई स्वामी जी से, वैश्या तुरंत पाई क्षमादान।।

                   ब्रिटिश शासक संग चिकित्सक सम्मिलित, हौले हौले विष किया महर्षि को प्रदान।  

षड्यंत्र से पर्दा गया हट, किंतु हो चुका घोर विलंब।।

                    प्रकट जो वैद्य समक्ष किए, तोड़ चुके महर्षि थे दम।।

                    दीपावली दीपों का वह दिवस, महर्षि जब मृत्यु को प्राप्त हुए।।

                 "अजब लीला प्रभु ने रची" ,। अंतिम शब्द महर्षि थे कहे।।

             भारतवर्ष है अत्यंत भागोंवाला, लिए जो जन्म महर्षि से विद्वान।।

           असाधारण छवि कर्मों से बनाई , मिट पाऐंगे ना जिसके निशान ।।

                

   


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