इतिहास भारतीय राष्ट्रीय गान का
इतिहास भारतीय राष्ट्रीय गान का
इतिहास आज तुम्हें बतलाऊं, अमर भारतीय राष्ट्रीय गान का।।
कवि रवींद्रनाथ टैगोर कहलाए मुख्य रचयिता, है प्रतीक भारतीय स्वाभिमान का।।
निकल वाणी से मधुर स्वर इसके, मां भारती को अति भाते हैं।।
गुंजे लयबद्ध सवर अति पावन, गंगा जमुना संग सम्मिलित हो जाते हैं।।
विंध्य व विशाल हिमालय पर्वत, सुन रहे मनमोहक यह धुन।।
कर गुणगान ऐसी पावनता का, समुद्री लहरें पाएं अत्यंत सुकून।।
बन तिलक तुम हिन्दुस्तान का , माथे पर सजते आए हो।।
पंजाब, सिंधु व गुजरात मराठों के, हृदयों में सिंहासन पाए हो ।।
बंगाल, ओडिशा व द्रविड़ होवे उत्तेजित, सजते हो तुम गली गली।।
राष्ट्रीय त्यौहारों के गणनायक तुम,जन करें गुणगान बनाकर टोली।।
रचयिता ने रचा राष्ट्रीय गान यह, उपयोग कर मूल ग्रंथ बंगाली।।
अत्याधिक सहज अनुवादित संस्करण, साधु(संस्कृत) भाषा जिसमें गई डाली।।
पं
च दोहे वाला यह गान, अवधि 52 सेकंड की करे पर्याप्त।।
प्रत्येक स्वर करे उत्तेजित, बनाएं मानव ह्रदय अति पाक।।
महान राष्ट्र गान रचियता की, गणना बलिदानों कि अविस्मरणीय।।
सौंप अमर निशानी भारतवर्ष को, जीवनकाल में कार्य किए प्रशंसनीय।।
इसकी मान प्रतिष्ठा हेतु, अत्यंत महत्वपूर्ण होता ठहराव।।
दिव्य ध्वनि सूनो, तो जाओ ठहर, संविधान देता भारतवासी को सुझाव।।
आचार संहिता है प्रतिनिंनाद, प्रशासन दिया कट्टर निर्देश।।
राष्ट्रीय कार्यक्रमों में दी जाए प्रस्तुति, भारतवर्ष को मिले भारी आदेश।।
देशभक्ति का परचम लहराया, हिंदूसतान मध्य हुआ यह दाखिल।।
कलकत्ता में देकर दिव्य प्रदर्शन, अमूल्य गहना बनकर हुआ शामिल।।
गीत यह गुनगुनाने से पूर्व, लहराएगा राष्ट्रीय ध्वज आंगन में।।
वर्षों से चलती आई प्रथा, बजती यह धुन शारदे प्रांगण में।।