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Sangeeta Tiwari

Abstract

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Sangeeta Tiwari

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वो गांव हमारे

वो गांव हमारे

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भारतवर्ष की अनेकों दिशाओं में, विभिन्न रूपों में बसे गांव हमारे।।

प्राकृतिक दृश्य जहां अजब सा, लहराते खेत दिखते बड़े प्यारे।।

अनेक शहरों की तुलना में होवे, वातावरण पूर्ण रूप में सुरक्षित।।

पेड़ पौधों की यह शुद्ध हवाएं, कदापि ना होने दे प्रदूषित।।


सदैव लहर लहर यहां लहरती, शाखाएं वृक्षों की मंद मंद।।

खिले जो फूल रंग-बिरंगे से, बिखेर रहे आनंदित सुगंध।।

देख भोर काल का दृश्य मनभावन, मनुष्य चाहे ग्रामीण क्षेत्रों में समाना ्।

अजी प्राकृतिक सौंदर्य का क्या कहना, प्रत्येक चाहता है लुफ्त उठाना।।


कदम कदम पर यहां स्थित, समाई अनेकों नदियां और झरने।।

प्रत्येक कुटुंबो से आती महिलाएं, एकत्रित होकर नीर गागर में भरने।।

ग्रामीण निवासी नित भोर काल में, संघर्षपूर्ण मैंदानों में रम जाते।।

खून पसीना बहाए सींचे मैदानों को, फलस्वरूप दाने फसलों के उग आते।।

 ग्रामीण क्षेत्र के समस्त निवासी, प्रबल नियमों का करते पालन ।।


नित्य परिश्रम के संग संग ग्रामवासी, बैठक लगा भिन्न विचारों का लेते आनंद।।

अनेकों कार्य में आरंभ व समापन हेतु बनकर सहायक हो जावे एकजुट।।

ह्रदय भीतर है भाव प्रेम के, आंख मूंदकर करते विश्वास अटूट।।

होवे जहां शहरी क्षेत्रों में, रात दिन सड़कों में अनेकों शोर ।।

तू दूजी ओर शांति व सरलता होती प्रतीत, प्रवेश करें जो गांव की ओर


देखकर चकाचौंध शहरों की, गांव त्याग डालो नहीं कदापि डेरा।।

 कहलाए अत्यंत धनी भागों के, गांव में जो प्राणी करते हैं बसेरा।।


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