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Sangeeta Tiwari

Abstract

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Sangeeta Tiwari

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प्रेम है या पहेली

प्रेम है या पहेली

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बंधन प्रेम का तोड़ आई मगर, यह दिल किसलिए बेकरार है।।

पिंजरा खोल पंछी विदा किया, फिर किसका मुझे इंतज़ार है।।

बारंबार क्यों तरस रही निगाहें, झलक छवि कि पाने को।।


जुदा स्वयं से किया जिसे, तरसता है मन गले लगाने को।।

मत बन कट्टर बैरी ए मन, तनिक इस तन पर रहम कर।।

मैं कहती हूं बहूंत रोएगा तु,फरेबी को अंतर आत्मा में रमाकर ।।

पन्ना क्यों नहीं रहा पलट, कभी तो हवा ऐसी चले।।


 कोई अपना जो लाया तुफान, उससे जल्द ही राहत मिले।।

समझ बैठी पगली प्यार जिसे, वह महज इक धोखा था।।

 जाते देख मुझे उस राह में, ऐ मालिक क्यों नहीं रोका था।।

बेसब्र मेरे इंतजार का, न जाने क्या होगा अंजाम।।


बढ़ता चलेगा सिलसिला ये आगे, या वक्त लगाएगा पूर्ण विराम।।

यु ना बुझा पहेली ए मालिक, बता क्या तेरी मर्जी है।।

बांध रहा कोई प्रेम का बंधन सच्चा, या लगा मुखौटा फर्जी है।


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