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Satyendra Gupta

Abstract

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Satyendra Gupta

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राह

राह

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13


जीवन की हर राह पे, रहा साथ हर किसी का

जन्म लिया धरती पे, रहा साथ मेरी मां का

बिन कहे समझती थी, हर अनकहे जरूरतों का

उसकी छुवन से अहसास था, ममता का

जीवन की हर राह पे, रहा साथ हर किसी का।


पिता ने अंगुली पकड़, था चलना सिखाया

जब मिलता था समय, वो मेरे साथ बिताया

मेरे हर दर्द को उन्होंने, अपना ही दर्द बनाया

खुशनसीब था जो मैं,  मां बाप का साया पाया,


जब मैं था हसता, उनके चेहरे पे हसीं पाया

जब मैं था रोता, उनके चेहरे पे रुआसी पाया

प्यार दुलार था, ना थी कमी किसी बात का

जीवन की हर राह पे, रहा साथ हर किसी का।


याद है मुझे पहला दिन, था मेरे स्कूल का

मन था नही जाने को,  था मां से दूर होने का

वो पहला दिन जो, मां के बिना था रहना

कोई नही था स्कूल में, जो जिद को पूरा करता


खूब था रोया , मां जैसा कोई नहीं समझाया

घर का था याद आ रहा,गुरु जी रूप में थे पिता का

जीवन की हर राह पे, रहा साथ हर किसी का।


समय के साथ रिश्ते, वो भी थे बढ़ रहे

जीवन में मित्र भी, थे अब मित्र  बढ़ रहे

उनके साथ पढ़ना, खेलना भा रहे थे


था लगता सूनापन, जब वो दूर जा रहे थे

मन था करता, बात करे हर बात का

जीवन की हर राह पे, रहा साथ हर किसी का।


गुजरा समय आ गया,था पल शादी विवाह का

वो भी था पल कैसा, होने जा रहे थे किसी का

दोस्त भी थे बोल रहे, थे मेरे मन को टटोल रहे

हमे न भूल जाना, कभी कभी मिलने आ जाना


हम थे शरमा रहे, ना थे कुछ बोल पा रहे

जवाब दे भी तो, ना जाने किस बात का

जीवन की हर राह पे, रहा साथ हर किसी का।


आज भी कहीं से आता हूं,मां की गोद में लेट जाता हूं,

मां के लिए छोटा सा बच्चा हूं,ममता वही आज भी पाता हूं,

उनका रहता आशीर्वाद हमेशा, तभी तो आगे पढ़ पाता हूं

हरेक रिश्ते को पाया, साथ भी पाया हर रिश्तों का

जीवन की हर राह पे,  रहा साथ हर किसी का।


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