एक ख़त उस दोस्त के नाम, जिससे मैं कई रोज़ से पीछा छुड़ाना चाहती हूँ
एक ख़त उस दोस्त के नाम, जिससे मैं कई रोज़ से पीछा छुड़ाना चाहती हूँ
ऐसा कहते हैं कि ज़िन्दगी में कुछ नया हमेशा खुशियां लेकर आता है,
पर तुम जबसे आये हो, मानो मेरा सब कुछ खो गया,
बस कुछ बाकी रह गया, तो तुमसे पीछा छुड़ाने की ख्वाहिश।
ऐसा नहीं है कि मैंने कोशिशें नहीं की, पर मेरी लाख़ कोशिशें भी तुम्हारे सामने छोटी पड़ जाती।
एक दौर ऐसा भी आया, मानो मैं भूल ही गयी कि तुमसे परे भी मेरी कोई दुनिया है,
या मानो मुझे बस तुम हि तुम हर जगह नज़र आने लगे,
फिर तो ऐसा भी लगा कि तुमसे अच्छा तो कोई भी नहीं है।
मैंने कई बार चाहा, तुमने जो मेरा छिपा दिया है उसे ढूंढ़कर लाऊं,
और तुम्हें उसके सामने इतना नीचा दिखाऊं, कि तुम मेरा पीछा छोड़ दो,
पर मैं तुमसे लड़ने जो भी ढूंढकर लाती, तुम मुझे वो सब भुला देते,
और फिर जो बचता, वो बस तुम्हारा साथ।
मैं तुमसे कैसे कहूं कि तुम मुझे ज़रा भी रास नहीं आते,
तुम जब मेरे पास होते हो, मुझे कुछ भी और याद नहीं आता, मेरे सपने, दोस्त, मेरे अपने, मेरी रौशनी, मेरी किताबें, मेरी ड्रॉइंग शीट, मेरे टॉम और जेरी, मेरी ख़ुशियाँ कुछ भी नहीं।
मैं बस तुम्हारे लिए सबसे दूर हो जाती हूँ।
तुम जब पास होते हो, तो मुझे तुम्हारे वज़ूद से नहीं अपने आपसे डर लगता है, ऐसा डर कि मानो मेरे खुद के दिल के धड़कने की आवाज़ से मेरा सर फट जायेगा।
तुम जब पास होते हो, तो मुझे तुम्हारी नहीं, मेरी अपनी आवाज़ कानों में चुभती है।
तुम इतने खुदगर्ज क्यों हो, क्या तुम्हें भी कोई बात खाये जा रही है,
या तुम इतने अकेले हो कि तुम्हें मैं और मेरे जैसे ही कई और पसंद आते हैं दोस्ती के लिए।
पर एक बात तो तुमसे सीखने वाली है,
तुम कायर नहीं हो, ऐसा नहीं है कि तुम सिर्फ उस वक्त आते हो, जब मैं अकेली होती हूं,
बल्कि तुम्हारा हौंशला तो इतना मज़बूत है, कि तुम बहुत शान से सबके सामने ही मुझसे मिलने आते हो।
मेरे कुछ तो अपने देख पाये कि तुम मुझे परेशान कर रहे हो, और कुछ नहीं भी,
पर जब तक मेरे अपने तुम्हे देख पाये, तुमने मुझे अपनी गिरफ्त में जकड़ लिया था।
तुम्हारी गिरफ्त भी बहुत मज़बूत है, इतनी मजबूत कि मेरे दिन, महीने और साल निकल गए, पर तुम नहीं गए।
पर अब भी तुम मुझे ज़रा भी रास नहीं आते,
कभी कभी तो तुम मेरी तुमसे पीछा छुड़ाने की सारी उम्मीदें भी तोड़ जाते हो,
और मुझे ऐसा लगता है मानो मैं तुमसे हार जाउंगी, मैं फिर तुमसे इतर किसी और से ना मिल पाउंगी।
कभी तो लगता है कि मैं तुमसे ही गिड़गिड़ाकर तुमसे ही मेरी रिहाई माँग लूं,
पर एक बात है जो अब भी बाक़ी है, मैं आज भी मांगकर कुछ पाना नहीं चाहती।
तुम खुदगर्ज हो, तो मैं भी ख़ुद मुख़्तार।
तुम निहायती ताकतवर हो तो मैं कभी ना हार मानने वाली।
तुम देखना तुम्हारी मुझे मिटा देने की सारी ख्वाहिशे, मैं तुमसे छीन लूँगी।
तुमने मुझे जिस क़दर नाउम्मीद किया है ना, मैं तुम्हें उतना ही ग़ैर अहंम कर दूंगी,
और इस शर्मिन्दगी में ग़र तुम मेरा पीछा छोड़कर चले गए,
तो मैं फिर तुम्हें कभी वापस नहीं आने दूंगी,
और फिर तुम अकेले होगे, मैं तुम्हें इतने ख़ालीपन से भर दूंगी, कि तुम्हारा वज़ूद ही ख़त्म हो जायेगा।
