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sonu santosh bhatt

Abstract

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sonu santosh bhatt

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खामोशियाँ

खामोशियाँ

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दिन भी खामोश है खामोश है ये रातें

खामोशियों की धूप, खामोशियों की बरसातें

हर लम्हा खामोशियों से शुरू, वही खत्म हो जाते।

आजकल खामोशियों का पहर लगता है

अब तो हवाओ में भी जहर लगता है

हर आवाज में खामोशियों का कहर लगता है।

इन खामोशियों के रहते जिंदगी बेकार हो गयी है

पानी मे भी छुरे के समान धार हो गयी है।

खामोशी हवाओ में बह रही है

खामोशी धूप की गर्मी सह रही है।

यहां धुंध छा गया खामोशी का

लगता है मौसम आ गया बेहोशी का

मेरी जिंदगी ना जाने किस आधार पर टिकी रह गयी

मैं तो चुप ही था, पर खामोशी सब-कुछ कह गयी।

मैं ना जाने क्यो खुद को खास पाना चाहता हूँ

खोया कुछ भी नही मगर

ना जाने क्या तलाशना चाहता हूँ।

खुद की कमियां गिनाऊँ अगर तो सुनते रह जाओगे।

सुनते सुनते सुबह के बाद बस ढली शाम पाओगे।

मेरी खामोशियों को परिंदों ने भी बढ़ाया है

छोड़ दिया चहकना ना कुछ खाया है।

मेरे आसपास बस एक ही चीज भटक रही है

खामोशियां बस खामोशियाँ ही खटक रही है।

ना जाने मैं कहाँ पहुंच गया पल भर में

सुनसान जंगल मे या खामोशियों के घर मे।

अंतिम सांस तक यदि खामोशिया साथ रहे

तो अंतिम सांस आना ही छोड़ देगी।

खामोशियों के डर से

अंतिम दिन तक खामोशिया साथ रहे

तो वो दिन कभी नही आएगा

खामोशियों के डर से।

हम उस दिन की तलाश में है

जो कभी नही हो आया

उस पहर की तलाश में है

जिसमे ना हो खामोशियों का साया।

अब तो खामोश चेहरों में

खामोशियों का पहरा लगता है।

चोट कितनी गहरी क्यो ना हो

दर्द खामोशियों से कम गहरा लगता है।

तुमको मैं ये कैसे समझाऊं

क्यो यूं ही तुमपे झूठा इल्जाम लगाऊं।

मगर सोचो यदि ऐसा हो

अगर आप एक ऐसे कमरे में बंद हो

जहां ना किसी प्रकार की गंध हो

खिड़की द्वारे कुछ ना हो

जहां आप बिल्कुल खुश ना हो।

किसी की आवाज अंदर ना आये

आपकी आवाज बाहर ना जा पाए

अंधेरा पूरे कमरे में छाया हो

जहाँ आपके शिवा कभी कोई ना आया हो।

उम्मीद ना हो बाहर जाने की

ना कुछ पीने की ना कुछ खाने की

जहाँ आप सिर्फ दो घंटे जी सकते है

मगर और जीना चाहते है

मगर मजबूरी है दम घुटता ही जाता है।

आप जी नही पाते है

आप चिल्लाते है मगर सुनने वाला कोई नही होता है।

खामोशियाँ भी खामोश रहकर तब रोता है।

आप खुद की चिल्लाहट खुद सुनते है।

हर एक सांस को

आखिरी सांस समझकर गिनते है।

इन खामोशियों को आप क्या कहेंगे।

ज्यादा से ज्यादा दो घंटे की ख़ामोशी सहेंगे।

पर मेरा तो खुले आसमां तले ये हाल है।

हम जिंदगी भर इन खामोशियों के साथ कैसे रहेंगे।



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