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Amit Kumar

Abstract

4.7  

Amit Kumar

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ज़िन्दगी को निमंत्रण

ज़िन्दगी को निमंत्रण

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ऐ ज़िन्दगी, मेरे घर में 

फिर वापस आ जाना तुम 

ऐ ज़िन्दगी मेरे संग में 

फिर हँस के बतियाना तुम। 


ऐ ज़िन्दगी बचपन वाली 

वो मिटटी ले आना तुम 

शैतानी में उधम मचाएं 

फिर माँ से पिटवाना तुम। 


ऐ ज़िन्दगी पापा वाला 

प्यार का गुस्सा दिखाना तुम 

वो मारें, फिर प्यार करें ,बस

उसी समय रुक जाना तुम।


ऐ ज़िन्दगी भाई-बहन सा 

निर्मल स्नेह सिखाना तुम 

आने वाले लोग समझ लें

कुछ ऐसा कर जाना तुम।


ऐ ज़िन्दगी फिर , स्कूलों की 

पिछली सीट बजाना तुम 

हम डर कर के, छुप कर बैठें 

और, सर से डांट पढ़ना तुम। 


ऐ ज़िन्दगी कॉलेज वाली 

लड़की बन कर आना तुम 

जब हारें हम प्यार की बाजी 

तो दोस्त बन समझाना तुम। 


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ऐ ज़िन्दगी ऑफिस में भी 

काम से प्यार सिखाना तुम 

जब भी हिम्मत हारें हम तो 

उद्देश्य याद दिलाना तुम। 


ऐ ज़िन्दगी प्यार ना सही 

पर साथी बन जाना तुम 

साथ ही हंसना ,साथ ही रोना 

साथ ही नखरे दिखाना तुम। 


ऐ ज़िन्दगी बच्चों वाली 

किलकारी बन जाना तुम 

नयी ज़िन्दगी बन कर मेरे 

घर में उधम मचाना तुम। 


ऐ ज़िन्दगी शादी वाली 

शहनाई बन जाना तुम 

नयी बेटी ,बन कर आँगन को 

फिर मेरे चमकाना तुम। 


ऐ ज़िन्दगी दादा दादी 

वाली ख़ुशी दिलाना तुम 

मेरे घर की जगह बड़ी हो 

और, लोग बहुत से लाना तुम। 


ऐ ज़िन्दगी बड़े सुकूं से 

एक शांति, ले आना तुम 

आँख बंद जब ,करे अंत में 

मुझमे रच बस जाना तुम।


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