ज़िन्दगी को निमंत्रण
ज़िन्दगी को निमंत्रण
ऐ ज़िन्दगी, मेरे घर में
फिर वापस आ जाना तुम
ऐ ज़िन्दगी मेरे संग में
फिर हँस के बतियाना तुम।
ऐ ज़िन्दगी बचपन वाली
वो मिटटी ले आना तुम
शैतानी में उधम मचाएं
फिर माँ से पिटवाना तुम।
ऐ ज़िन्दगी पापा वाला
प्यार का गुस्सा दिखाना तुम
वो मारें, फिर प्यार करें ,बस
उसी समय रुक जाना तुम।
ऐ ज़िन्दगी भाई-बहन सा
निर्मल स्नेह सिखाना तुम
आने वाले लोग समझ लें
कुछ ऐसा कर जाना तुम।
ऐ ज़िन्दगी फिर , स्कूलों की
पिछली सीट बजाना तुम
हम डर कर के, छुप कर बैठें
और, सर से डांट पढ़ना तुम।
ऐ ज़िन्दगी कॉलेज वाली
लड़की बन कर आना तुम
जब हारें हम प्यार की बाजी
तो दोस्त बन समझाना तुम।
p>
ऐ ज़िन्दगी ऑफिस में भी
काम से प्यार सिखाना तुम
जब भी हिम्मत हारें हम तो
उद्देश्य याद दिलाना तुम।
ऐ ज़िन्दगी प्यार ना सही
पर साथी बन जाना तुम
साथ ही हंसना ,साथ ही रोना
साथ ही नखरे दिखाना तुम।
ऐ ज़िन्दगी बच्चों वाली
किलकारी बन जाना तुम
नयी ज़िन्दगी बन कर मेरे
घर में उधम मचाना तुम।
ऐ ज़िन्दगी शादी वाली
शहनाई बन जाना तुम
नयी बेटी ,बन कर आँगन को
फिर मेरे चमकाना तुम।
ऐ ज़िन्दगी दादा दादी
वाली ख़ुशी दिलाना तुम
मेरे घर की जगह बड़ी हो
और, लोग बहुत से लाना तुम।
ऐ ज़िन्दगी बड़े सुकूं से
एक शांति, ले आना तुम
आँख बंद जब ,करे अंत में
मुझमे रच बस जाना तुम।