मैं क्यों आता हूँ
मैं क्यों आता हूँ
अपने अंतर्मन की पुकार पे
हर बार जगत में आता हूं
हर बार जिंदगी जीता हूँ
फिर अग्रसर हो जाता हूँ।
कितने सहकर्मी मिलते हैं
कुछ से अपनापन होता है
कुछ दूर बैठ के हँसते हैं
कुछ को पागल मन रोता है।
हर बार इन्ही में फसता हूँ
और सत्य भुला ही जाता हूँ
अपने अंतर्मन की पुकार पे
हर बार जगत में आता हूं।
में कौन हूँ और क्या कर्म मेरा
बस इसे ही हमने सच माना
कुछ बनने की अभिलाषा में
कहा ,किसी का ना माना
हर बार बड़ा होने भर को
में खुद में ही गिर जाता
हूँ
अपने अंतर्मन की पुकार पे
हर बार जगत में आता हूं
कहने को पानी सा जीवन
हर रंग में घुल मिल जाता है
कभी देकर खुशी हँसाता है
कभी देकर दर्द रुलाता है
हर बार कई भावों को रख
मैं सुदूर लोक को जाता हूँ
अपने अंतर्मन की पुकार पे
हर बार जगत में आता हूं
जीवन की रचना लिख कर के
इस बार जगत से जाऊंगा
ये जटिल पहेली जीवन की
कुछ हद तक तो सुलझाऊंगा
सब छोड़ यहीं अब जाऊंगा
इस लिए रोज में गाता हूँ
अपने अंतर्मन की पुकार पे
हर बार जगत में आता हूं।