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Amit Kumar

Classics Inspirational Children

4.5  

Amit Kumar

Classics Inspirational Children

कान्हा की बात, कान्हा के साथ

कान्हा की बात, कान्हा के साथ

2 mins
332


तेरे स्वभाव को हर पल 

मैं खुद में ही संजोता हूँ। 

समय के साथ चलता हूँ 

करम के पथ पे रहता हूँ। 


कई रूपों में बटकर के 

सभी के संग खड़ा हूँ में 

तू मुझ में यूँ समाया है 

की खुद को तू ही कहता हूँ 


की जब भी जन्म हो तेरा  

किसी भी रूप में आये 

सभी खुशिया मानते है 

की मेरे कान्हा फिर आये। 


मगर ये लोग पागल है 

ना तुझको जान पाते है 

तेरे हर कर्म की क्रीड़ा का

मतलब कुछ लगाते हैं। 


की तू, रहता तो है हर पल 

इन्ही के रूप में, इन संग 

क्या तुझको है यंकी कान्हा 

ये तुझे जान पाते हैं ?


जो तू हर साल आता है 

भवन और भव्यता के संग 

तो दुनिया जश्न करती है

तुझे गोदी में भर भर कर। 


अगर तू सामने आये 

सुदामा रूप में दर पर 

की पहना हो फटा कपड़ा

तेरी पहचान हो जर्जर। 


क्या तुझको तब भी लगता है ?


क्या तुझको तब भी लगता है ?  

ये तुझको पास लाएंगे ?

की ऐसे ही तुझे गोदी में 

भरकर गीत गाएंगे?


तुझे पूजेंगे ऐसे ही ?

की अपने घर बुलाएंगे ?

तेरे सब पैर धोयेंगे ?

तुझे माखन खवाएंगे ?


नहीं कान्हा , 

मेरे कान्हा

तुझे जब पाएंगे ऐसा 

तो ना पहचान पाएंगे। 

तुझे गन्दा समझकर के 

जरा दूरी बनाएँगे। 


की कुछ तो हाथ जोड़ेंगे 

बुरा व्यवहार करने को। 

की कुछ तो गालिया देकर 

तुझे ताना सुनाएंगे। 


जो तेरा रूप सुन्दर है 

तभी तू नयन तारा है 

जो तेरी भव्यता चमके 

तभी तू इनका प्यारा है। 


तुझे भी है पता सब कुछ 

तभी तो रूप धरता है 

कभी चुपचाप हो के ही 

जरूरत पूरी करता है। 


तुझे हर कण में पाता हूँ

सभी के रूप में तू है 

मैं तुझमें, तू मुझिमें है 

यही महसूस करता हूँ।। 


तेरे हर भाव को सहकर 

मैं दिल ही दिल में रोता हूँ। 

तू मुझ में यूँ समाया है 

की खुद को तू ही कहता हूँ।।


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