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Amit Pandey

Drama

5.0  

Amit Pandey

Drama

किस्से अम्मा के

किस्से अम्मा के

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क्या दिन थे वो भी जब,

अम्मा की गोदी में सिर रख सोता था,


अम्मा की इक फटकार से,

बस मैं खूब फफक कर रोता था,


जब रातों को नींद न आती थी,

तो बस अम्मा की लोरी से सोता था,

क्या दिन थे वो भी.....


लगी कभी गर चोट मुझे,

अम्मा को नींद न आती थी,


सारी रैना वो बैठ मेरे,

घावों को सहलाती थी,


झपकी लगते ही मुझे वह,

आँचल से हवा डुलाती थी,


झपकी लगती जब अम्मा को,

वह झटपट से उठ जाती थी,


जब कभी पापा नाराज़ हुए,

तो अम्मा मुझे बचाती थी,


कोई हमको कुछ गलत कहे,

अम्मा उससे लड़ जाती थी,


नखरे खूब हमारे भी थे,

तो अम्मा उन्हें उठाती थी,


क्या खाओगे मुन्ना तुम आज,

यह पूछ के खाना पकाती थी,


जब चलना न आता हमको,

वह उंगली पकड़ चलाती थी,


जब बड़े हुए थोड़ा हम तो,

अच्छे बुरे का पाठ पढ़ाती थी,


जब बचपन में स्कूल गया मैं,

तो अम्मा मुझे ले जाती थी,


जब आता था मैं विद्यालय से,

तो अम्मा मुझे पढ़ाती थीं,


मेरे विद्यालय के गृहकार्य,

अम्मा ही मुझे कराती थी,


जब भी रोया मैं किसी बात पर,

तो अम्मा शान्त कराती थी,


पापा जी से चोरी चुपके,

वह हमको चीज़ें दिलाती थी,


गर हुई कभी नाराज़ वो तो,

डंडे से मार लगाती थी,


गर मार कभी ज़्यादा लगती,

तो अम्मा हल्दी दूध पिलाती थी,


जब हुआ कभी बुखार तेज़ तो,

ठंडी पट्टी बन जाती थी,


जब जगा रात भर पढ़ने को मैं,

अम्मा ही चाय बनाती थी,


उठो पढ़ो मुन्ना पेपर है,

यह कहकर सुबह जगाती थी,


फिर खुद भी भोर में उठकर,

वह मेरी टिफिन बनाती थी,


जब भी परिणाम मेरा आता,

तो अम्मा खुश हो जाती थी,


मानो मेरे परिणामों से,

अम्मा उत्तीर्ण हो जाती थी,


फिर पिता के वापस आने पर,

खुश होकर उन्हें बताती थी,


जब दीदी से झगडा होता,

अम्मा फटकार लगाती थी,


दोनों को खाना ना दूँगी,

यह कह कर डॉंट लगाती थी,


अम्मा के किस्से बहुत से हैं,

सारे कैसे लिख पाऊँगा,


मेरे शरीर का रोम रोम,

अम्मा के क़र्ज़ में डूबा है,


चाहे कर लूँ कुछ भी जीवन में,

अम्मा का क़र्ज़ कभी चुका न पाऊँगा,


क्या दिन थे वो भी जब अम्मा की,

गोदी में सिर रख सोता था,


अम्मा की इक फटकार से बस,

मैं खूब फफक कर रोता था।।



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