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Amit Pandey

Drama Inspirational

5.0  

Amit Pandey

Drama Inspirational

दुनिया से कब तक छुपाओगी

दुनिया से कब तक छुपाओगी

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कब तब अपनी इस पीड़ा को दुनिया से यूँ छुपाओगी,

कब तक अपनी इस दुविधा को कहने से कतराओगी।


लोगों के आगे कहने में कब तक तुम यूं शर्माओगी,

कब तक यूँ ही खुसुर फुसुर माँ बहन से ही बतलाओगी।


कब तक काली भूरी पन्नी में चोरी चुपके वो लाओगी,

कब तक घर के मर्दों को यूं बतलाने में कतराओगी।


कब तक दागी कपड़ों को नज़रें झुका के छुपाओगी,

कब तक मासिक धर्म को यूँ जिल्लत से सहते जाओगी।


रोग बीमारी नहीं है यह जो दुनिया से डरते जाओगी,

है शरीर की एक क्रिया जिससे न तुम बच पाओगी।


फिर क्यों इसके होने पे पर्दा शरम का लगाओगी,

प्रण आज से लो ये तुम खुली सोच अपनाओगी,

भैया पापा से भी कहने में नहीं कभी कतराओगी।


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