नारी शक्ति तुम क्या जानो
नारी शक्ति तुम क्या जानो
नारी शक्ति तुम क्या जानो,
कितनी पीड़ा को सहती है,
नौ माह तक अपने शिशु को ,
जो कोख में लेकर रहती है।
मासिक धर्म की पीड़ा से,
जो खून में लथपथ रहती है,
इतनी पीड़ा सहकर भी जो,
भूले से कुछ न कहती है।
उलझन अपनी सब भूलभाल,
दिन रात काम वो करती है,
फिर भी लोगों की नज़रों में,
वो नारी अशुद्ध ही रहती है।
कुछ बड़े मनीषी होशियार,
अपना कानून बताते हैं,
ये ना छूना ये ना करना,
वो नारी को समझाते हैं।
नासमझ हैं वो ना जाने हैं,
कितना तनाव मन रहती है,
कभी कमर दर्द कभी पेट दर्द,
रहती दिन रात तड़पती है।
आओ हम उसका साथ दें,
एक नयी सोच का पाठ दें,
युग नया लाए, बेहतर ये काम,
करलें उसके हाथों को थाम।
वे हैं सशक्त जननी सबकी,
सूरत भोली मूरत रब की,
करके उनकी हालत का भान,
हो पुरुष तो लेना अब ये ठान।
करनी है दूर पीड़ा उसकी,
जिसमे दिन रात तड़पती हैं,
करना है उसको दर्द मुक्त,
जो दर्द वो हरदम सहती है।
नारी शक्ति तुम क्या जानो
कितनी पीड़ा को सहती है
